क्या आप जानते हैं कि रेबीज रोज हमारे पालतू पशुओं के लिए मृत्यु का कारण बन सकता हैं? यह एक विषाणु जनित रोग है, जो कुत्ते, बिल्ली, बंदर, गीदड़, लोमडी या नेवले के काटने से होता हैं। रेबीज रोग से संक्रमित पशुओं के काटने पर इस रोग के विषाणु स्वस्थ पशुओं के शरीर में प्रवेश करते हैं और उनके तंत्र को प्रभावित करते हुए मस्तिक तक पहुंच जाते हैं।
उचित इलाज नहीं मिलने पर पशुओं की मृत्यु भी हो सकती हैं। केवल इतना ही नहीं, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, घोड़े, ऊट, आदि पशुओं के अलावा यह रोग मनुष्यो के लिए भी बहुत घातक होता है। आपको शायद यह जानकर हैरानी होगी कि दुधारू पशुओं में रेबीज रोग होने पर रोग के विषाणु दूध में आ सकते हैं। इसलिए इस रोग से प्रभावित पशुओं के दूध का सेवन न करें।
पशुओं में रेबीज के लक्षण
रेबीज रोग से प्रभावित पशुओं को पानी से डर लगता है। जिससे वे पानी से दूर भागने लगते हैं। पशु अपना सिर किसी पेड़ या दीवार पर मारने लगते हैं। पशुओं के मुंह से लार गिरने लगता हैं। कुछ समय बाद पशुओं की पिछली टांगे कमजोर हो जाती हैं। उग्रता, पागलपन या लकवा के लक्षण नजर आने लगते हैं।
पशुओं को रेबीज रोग से बचाने के उपाय
पशुओं को इस रोग से बचाने के लिए एंटी रेबीज का टीका लगवाए। गाय भैंस एवं नवजात पशुओं को आवारा कुत्ते एवं बिल्लियों से दूर रखें।अपने पालतू कुत्ते, बिल्ली को नियमित अंतराल पर रेबीज का टीका लगवाता रहे।
रेबीज रोग से प्रभावित जानवरों के काटने पर करे यह कार्य
कुत्ते, नेवले, बिल्ली, आदि जानवरों के काटने पर तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें। कुत्ते, बिल्ली, नेवले, लोमड़ी, आदि के काटने पर काटे गए स्थान को साफ पानी से 15 से 20 मिनट तक धोए। इसके बाद घाव को साबुन से अच्छी तरह से सफाई करें।
पानी सूखने के बाद काटे हुए स्थान पर एंटीसेप्टिक दवा लगाएं। रेबीज रोग से प्रभावित पशुओं को अन्य पशुओं से अलग रखें। संक्रमित पशुओं के खाने पीने की अलग व्यवस्था करें। प्रभावित पशुओं के दूध का सेवन न करें।
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