रिलायंस इंडस्ट्रीज यानी आरआईएल ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर के सहयोग से एक महत्वकांक्षी परियोजना के तहत बायोगैस उत्पादन के लिए उपयोगी घास की 11 किस्में विकसित करने का निर्णय लिया है। इसके लिए कंपनी लगभग 100 करोड़ रुपए का निवेश करेगी। परियोजना के लिए आईसीएआर के झांसी स्थित भारतीय चरागाह और चारा अनुसंधान संस्थान (आईजीएफआरआई) के साथ समझौते पर हस्ताक्षर की संभावना है।
यह परियोजना पांच साल तक चलेगी, जिसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज 85 करोड़ रुपए तक निवेश करेगी। इस परियोजना के तहत विकसित की गई घास की प्रजातियों का पेटेंट आईजीएफआरआई के पास रहेगा, लेकिन रिलायंस इन्हें व्यावसायिक खेती के लिए उपयोग कर सकेगी। उद्देश्य है कि इन चारा फसलों को बायोगैस उत्पादन के लिए फीडस्टॉक के रूप में उपयोग किया जाए। आईजीएफआरआई द्वारा पहले से विकसित बाजरा नेपियर हाइब्रिड घास औद्योगिक उपयोग के लिए उपयुक्त है।
यह प्रति एकड़ 250 टन उपज दे सकती है, जिसे 300 से 350 टन तक बढ़ाया जा सकता है। हालांकि सर्दियों के दौरान उत्तर। भारत में ठंड प्रतिरोधी किस्मों की कमी उपज को सीमित करती है। वैज्ञानिक अब ऐसी किस्में विकसित करने पर काम कर रहे हैं जो ठंड में भी बेहतर प्रदर्शन कर सकें। दक्षिण भारत में किसान हर 40 से 45 दिनों में घास की कटाई कर सकते हैं, जिससे प्रति वर्ष 9 कटाई तक संभव है। पौधे की ऊंचाई 9 से 10 फीट तक बढ़ती है और कटाई में देरी करने पर यह 12 से 13 फिट तक पहुंच सकती है।
घास आधारित फीडस्टॉक से किसानों के लिए आय बढ़ाने के व्यापक अवसर हैं। यदि उन्हें 5 हजार रुपए प्रति टन की कीमत मिलती है, तो प्रति हैक्टेयर खेत से सालाना 12 लाख तक कमाई की जा सकती है। चारा फसलों को बढ़ावा देने में सबसे बड़ी चुनौती खाद्य बनाम ईंधन की बहस रही है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि किसानों के लिए यह पारंपरिक फसलों की तुलना में ज्यादा लाभदायक हो सकता है। वर्तमान में कटाई के लिए मशीनीकृत तकनीक उपलब्ध नहीं है, जो एक बड़ी बाधा बनी हुई है।
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