संसदीय समिति ने सर्दियों के दौरान पराली जलाने को हतोत्साहित करने के लिए धान के अवशेषों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी जैसी मूल्य निर्धारण तंत्र की स्थापना की सिफारिश की है। राज्यसभा में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में समिति ने सुझाव दिया कि यह तंत्र किसानों द्वारा पराली संग्रह में आने वाली लागत, जैसे श्रम और मशीनरी को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाए। साथ ही, इन न्यूनतम समर्थन मूल्य की हर साल खरीफ फसल के मौसम से पहले समीक्षा और अधिसूचना होनी चाहिए।
दिल्ली एनसीआर में सर्दियों के दौरान प्रदूषण का स्तर खतरनाक हो जाता है, जिसका मुख्य कारण पराली जलाना, पटाखों का उपयोग, वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन और अन्य स्थानीय प्रदूषण स्त्रोत हैं। पंजाब और हरियाणा में बड़ी संख्या में किसान अगली फसल की तैयारी के लिए अपने खेतों में फसल अवशेष जलाते हैं। हालांकि, केंद्र सरकार किसानों को पराली प्रबंधन के लिए हैप्पी सीडर, रोटावेटर और मल्चर जैसी सब्सिडी वाली मशीनरी प्रदान करती है, लेकिन ईंधन की बढ़ती कीमतें इनका उपयोग सीमित कर रही हैं।
कुछ किसान धान के अवशेष बायोमास प्लांट ओर बॉयलर को बेचते हैं, लेकिन इनकी कीमतें तय नहीं होती। संसदीय समिति ने सुझाव दिया कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के परामर्श से एक तंत्र स्थापित किया जाए, ताकि धान के अवशेषों के लिए एक न्यूनतम मूल्य तय किया जा सके। यह मूल्य एमएसपी की तर्ज पर किसानों को उनके अवशेषों की बिक्री पर गारंटीकृत आय सुनिश्चित करेगा।
इसके अतिरिक्त, समिति ने राज्य सरकारों से आग्रह किया है कि वे PUSA 44 जैसी लंबी अवधि वाली किस्मों की जगह कम अवधि की धान की किस्मों को बढ़ावा दें। साथ ही, फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए किसानों को वित्तीय सहायता और खरीद प्रक्रियाओं के मानकीकरण की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
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