भारत बायोटेक की पशु स्वास्थ्य शाखा बायोवेट को गांठदार त्वचा रोग यानी लम्पी स्किन डिजीज (एल एस डी) के लिए विकसित स्वदेशी वैक्सीन बायोलम्पीवैक्सिन के उत्पादन और उपयोग के लिए भारतीय दवा नियामक से मंजूरी मिल गई है। यह डेयरी मवेशियों और भैंसों के लिए एक साल में एक बार दिया जाने वाला टीका है, जिसे तीन महीने से अधिक उर्म के पशुओं के लिए अनुमोदित किया गया है।
पिछले दो सालों के दौरान देश भर में एलएसडी के कारण लगभग 2 लाख मवेशियों की मौत हो गई है, जबकि लाखों अन्य मवेशियों की दूध उत्पादन क्षमता प्रभावित हुई है। भारत बायोटेक के अनुसार, इस बीमारी ने देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और डेयरी उद्योग को लगभग 18,337.76 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाया है और दूध उत्पादन में 26 प्रतिशत तक की गिरावट आई है।
बायोलम्पीवैक्सिन को कर्नाटक के मल्लूर स्थित बायोटेक ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी ICAR के साथ मिलकर विकसित किया है। इसका परीक्षण आईसीएआर राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र यानी NRCE और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान यानी IVRI में किया गया है। इस टीके में डीआईवीए मार्कर तकनीक का उपयोग किया गया है, जिससे यह पहचाना जा सकता है कि किसी जानवर को टिका लगाया गया है या वह पहले से संक्रमित था।
गौरतलब है कि भारत के पास वर्तमान में एक अन्य स्वदेशी वैक्सीन लुम्पी-प्रोवैक भी है, जिसे आईसीएआर, आईवीआरआई द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया था। बायोलम्पीवैक्सिन का निर्माण एलएसडी वायरस/रांची/2019 वैक्सीन स्ट्रेन का उपयोग करके किया गया है।
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