सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया यानि सोपा ने केंद्र सरकार से जुलाई से पहले मूल्य समर्थन योजना के तहत खरीदे गए सोयाबीन की बिक्री पर रोक लगाने का अनुरोध किया है। संगठन का कहना है कि ऐसा करने से कीमतों में और गिरावट आ सकती हैं, जो पहले से ही न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे चल रही हैं।
सोपा के अध्यक्ष दविश जैन ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर कहां कि मौजूदा समय में सोयाबीन की बिक्री का फैसला गलत होगा, क्योंकि इससे कीमतें और गिरेंगी। इससे किसान खरीफ सीजन में सोयाबीन की बुआई कम कर सकते हैं, जिससे उत्पादन प्रभावित होगा। उन्होंने कहां की महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान के किसानों से बातचीत में यह संकेत मिला है कि सोयाबीन की कम कीमतों से वे निराश है और आने वाले सीजन में ज्यादा लाभदायक फसलों की ओर रुख कर सकते हैं।
सोपा ने तर्क दिया कि यह कदम सरकार की आत्मनिर्भर भारत नीति के भी विपरीत होगा। उन्होंने दालों के उदाहरण का जिक्र करते हुए कहां कि जब किसानों को अच्छा मूल्य मिला, तो उन्होंने दाल उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने का निर्णय लिया। तिलहन के मामले में भी यही तर्क लागू होता है। यदि किसानों को लाभकारी मूल्य मिलेगा, तो वे तिलहन की खेती को प्राथमिकता देंगे।
इसलिए सोपा ने कृषि मंत्री से अपील की है कि नैफेड और एनसीसीएफ द्वारा रखे गए सोयाबीन स्टॉक को 15 जुलाई के बाद ही खुले बाजार में बेचा जाए, ताकि खरीफ की बुआई पूरी होने के बाद बाजार में इसका आसान न पड़े।
गौरतलब है कि नैफेड के ताजा आंकड़ों के अनुसार 2024 से 25 के खरीफ विपणन सत्र में 4,892 रुपए प्रति क्विंटल के एमएसपी पर 14.71 लाख टन से ज्यादा सोयाबीन खीरदा गया है। इसमें से 8.36 लाख टन मध्य प्रदेश से खरीदा गया। सरकार के पहले अग्रिम अनुमानों के मुताबिक, इस साल सोयाबीन उत्पादन 133.60 लाख टन रहने की उम्मीद है, जो पिछले साल के 130.62 लाख टन से ज्यादा है।
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