फिलीपींस स्थित अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान यानी आईआरआरआई के उप महानिदेशक अजय कोहली ने कहां है कि आने वाले सालों में धान की खेती में यूरिया की खपत लगभग 50 प्रतिशत तक कम होने की संभावना है। यह बदलाव उन नई धान किस्मों के विकास से संभव होगा, जिनमें मौजूदा यूरिया की आधी मात्रा की आवश्यकता होगी, लेकिन इससे उपज पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
हैदराबाद में प्रोफेसर जयशंकर तेलंगाना कृषि विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित बेहतर भविष्य के लिए चावल अनुसंधान सेमिनार में बोलते हुए, कोहली ने बताया कि धान की नई किस्मों के लिए गहन अनुसंधान जारी है। इन किस्मों से नाइट्रोजन युक्त उर्वरक, विशेष रूप से यूरिया की खपत में कमी आएगी, जिससे मिट्टी की सेहत सुधरेगी और मानव स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
उन्होंने यह भी कहां की मिट्टी और अनाज में उर्वरकों के अवशेष मनुष्यों के लिए हानिकारक हो सकते हैं। कोहली ने कहां कि आईआरआरआई द्वारा विकसित आईआर-8 और आईआर-64 जैसी उच्च उपज देने वाली धान किस्में भारत सहित पूरे एशिया में अत्यधिक लोकप्रिय रही हैं। इन किस्मों ने बड़े पैमाने पर धान उत्पादन बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इस मौके पर विश्व खाद्य पुरस्कार विजेता समरेंदु मोहंती ने कहां कि दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए धान की खेती को बढ़ावा देना ज़रूरी है। इससे किसानों की आय में भी वृद्धि होगी। उन्होंने जोर दिया कि चावल की गुणवत्ता सुधारने और किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीक वाली चावल मिलों की स्थापना महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
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