गुजरात की उंझा मंडी में 14 से 21 मई के दौरान जीरे की कीमतों में एक हजार रुपए प्रति क्विंटल की गिरावट दर्ज की गई। 14 मई को जीरे का औसत भाव 23,250 रुपए प्रति क्विंटल था, जो 21 मई को घटकर 22,250 प्रति क्विंटल पर आ गया। कीमतों में यह गिरावट मुख्य रूप से घरेलू खरीदारों की कमजोर मांग और निर्यात में सुस्ती के कारण हुई है।
बाजार सूत्रों के अनुसार खुदरा खरीद सीजन की समाप्ति और विदेशी खरीदारों की निष्क्रियता के चलते व्यापार सुस्त पड़ा हुआ है। वहीं, देश की प्रमुख मंडियों में कुल आवक पिछले सत्र की 28,000 बोरी की तुलना में बढ़कर 32,900 बोरी हो गई है। आवक में यह वृद्धि बाजार पर आपूर्ति का दबाव बढ़ा रही है।
देश के दोनों प्रमुख जीरा उत्पादक राज्यों गुजरात और राजस्थान में इस साल प्रतिकूल मौसम की वजह से जीरे की बुवाई में देरी हुई है। कीमतों में गिरावट के चलते किसानों ने जीरे के बजाय मूंगफली, अजवाइन और सौंफ जैसी दूसरी लाभकारी फसलों की ओर रुख किया। एग्रीवॉच के मुताबिक राजस्थान में रकबे में 30 प्रतिशत और गुजरात में 18 प्रतिशत की कमी आई है। नतीजतन, 2025-26 के लिए जीरे का उत्पादन घटकर 3.24 लाख टन रहने का अनुमान है, जो पिछले साल के 4.57 लाख टन से काफी कम है।
अप्रैल से फरवरी 2025 के बीच सालाना आधार पर जीरे का निर्यात 62.55 प्रतिशत बढ़कर 1.95 लाख टन पहुंचा है, लेकिन फरवरी महीने में मासिक निर्यात में जनवरी की तुलना में लगभग 24 प्रतिशत की कमी आई है। हालांकि, भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव कम होने से आनेवाले दिनों में निर्यात में बढ़ोतरी की उम्मीद जताई जा रही है।
आयात के मोर्चे पर भी बड़ी गिरावट देखी गई है। जीरे का आयात 93.7 प्रतिशत घट गया है, जो देश की आत्मनिर्भरता की ओर इशारा करता है। हालांकि, वैश्विक अनिश्चितता और सीमित वित्तीय पहुंच के चलते बाजार की धारणा दबाव में बनी हुई है। बाजार विशेषज्ञों का मानना हैं कि उत्पादन में संभावित गिरावट और भविष्य में स्टॉकिस्टों की बढ़ती रुचि के चलते अगले कुछ दिनों में जीरे की कीमतों को फिर से संबल मिल सकता है।
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