विश्व में परवल की खेती भारत के अलावा चीन, रूस, थाईलैंड, पोलैंड, पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, श्रीलंका, मिश्र तथा म्यानमार में होती है। भारत में इसकी खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, मद्रास, महाराष्ट्र, गुजरात, केरल तथा तामिलनाडु राज्यों में परवल की खेती की जाती है। उत्तर प्रदेश में परवल की खेती व्यावसायिक स्तर पर जौनपुर, फैजाबाद, गोण्डा, वाराणसी, गाजीपुर, बलिया तथा देवरिया जनपदों में होती है।
जबकि बिहार में परवल की व्यावसायिक खेती पटना, वैशाली, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, चम्पारण, सीतामढ़ी, बेगूसराय, खगड़िया, मुंगेर तथा भागलपुर में होती है। बिहार में इसकी खेती मैदानी तथा दियारा क्षेत्रों में की जाती है। बरसात में परवल में फल, लत्तर और जड़ सडन रोग कुछ ज्यादा ही देखने को मिलता है, इसका प्रमुख कारण वातावरण में नमी का ज्यादा होना है।
फय्तोफ्थोरा मेलोनिस के कारण परवल के फल, लत्तर और जड़ के सड़न की बीमारी होती है, जो देश के प्रमुख परवल उगाने वाले सभी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर होती है। इस रोग की गंभीरता लगभग सभी परवल उत्पादक क्षेत्रो में देखने को मिलता है। यह रोग खेत में खड़ी फसल में तो देखने को मिलता ही है इसके अलावा यह रोग जब फल तोड़ लेते है,
उस समय भी देखने को मिलता है। फलों पर गीले गहरे रंग के धब्बे बनते हैं, ये धब्बे बढ़कर फल को सड़ा देते हैं तथा इन सड़े फलों से बदबू आने लगती है जो फल जमीन से सटे होते है, वे ज्यादा रोगग्रस्त होते हैं। सड़े फल पर रुई जैसा कवक दिखाई पड़ता है। जड़े सड़ जाती है जिससे परवल की लत्तर बीमार जैसी दिखाई देती है। यदि इस रोग का समय से प्रबंधन नही किया गया तो भारी नुकसान होता है।
परवल के फल, लत्तर और जड़ सड़न रोग का प्रबंधन कैसे करें?
इसके नियंत्रण के लिए फलों को जमीन के सम्पर्क में नहीं आने देना चाहिए। इसके लिए जमीन पर पुआल या सरकंडा को बिछा देना चाहिए। फफुंदनाशक जिसमे रीडोमिल एवं मैंकोजेब मिला हो यथा रीडोमिल एम गोल्ड @ 2ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने एवं इसी घोल से परवल के आसपास की मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भीगा देने से रोग की उग्रता में कमी आती है।
ध्यान देने योग्य बात यह है की दवा छिडकाव के 10 दिन के बाद ही परवल के फलों की तुड़ाई करनी चाहिए। दवा छिडकाव करने से पूर्व सभी तुड़ाई योग्य फलों को तोड़ लेना चाहिए। मौसम पूर्वानुमान के बाद ही दवा छिडकाव का कार्यक्रम निर्धारित करना चाहिए, क्योकि यदि दवा छिडकाव के तुरंत बाद बरसात हो जाने पर आशातीत लाभ नही मिलता है।
PC : डॉ. एसके सिंह प्रोफेसर सह मुख्य वैज्ञानिक(प्लांट पैथोलॉजी) एसोसिएट डायरेक्टर रीसर्च डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर बिहार
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