बैंगन का उपयोग आमतौर पर हमारे यहां सब्जी के लिए किया जाता है। हमारे देश के अलावा भी यह अन्य कई देशों की प्रमुख सब्जी की फसल हैं। बैंगन की फसल बाकी फसलों से ज्यादा सख्त होती है। इसके सख्त होने के कारण इसे शुष्क या कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। इसमें विटामिन ए तथा बी के अलावा कैल्शियम, फास्फोरस और लोहे जैसे खनिज भी पाएं जाते हैं। यदि इसकी उपयुक्त उत्तम किस्में तथा संकर किस्में बोई जाए और उन्नत वैज्ञानिक क्रियाएं अपनाई जाएं तो इसकी फसल से काफी अधिक उपज मिल सकती हैं।
बैंगन की फसल की बुवाई
भारत वर्ष में बैंगन की खेती लगभग पूरे साल की जा सकती हैं, यानी रबी, खरीफ और ग्रीष्मकालीन में। मुख्यतः दक्षिण भारत में जनवरी, फरवरी, मार्च या अप्रैल में इसकी खेती की जाती हैं।
बैंगन की खेती के लिए मिट्टी का उपचार
100 से 150 किलोग्राम 12 माह पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद में एक लीटर जी-बायो फॉस्फेट एडवांस को किसी छायादार स्थान पर मिलाकर एक दिन तक हवा लगने के बाद प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
बीज उपचार
इसके बाद 10 मिली जी-बायो फॉस्फेट एडवांस को प्रति किलोग्राम सूखे बीज को उपचारित करके खेतों में बुवाई करें। बीज उपचार के लिए पानी का उपयोग नहीं करना हैं।
पौधे का उपचार
10 मिली जी-पोटाश को एक लीटर पानी के साथ घोलकर बैंगन के पौधों की जड़ों को 15 से 20 मिनट तक ट्रीटमेंट करें व सिंचाई से पहले आवश्यकतानुसार यानी 25 किलोग्राम यूरिया व 15 किलोग्राम डीएपी के साथ 10 किलोग्राम जी-सी पावर और 4 से 8 किलोग्राम जी-वैम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें व 40 से 50 दिनों के बाद खड़ी फसल में 100 किलोग्राम ताजी गोबर को 200 लीटर पानी में घोलकर व एक लीटर जी-एनपीके मिलाकर पौधों के जड़ों में एक या डेढ़ मग डालें।
फूल एवं फल आने पर
बैंगन के पौधों में फूल लगने पर 15 लीटर पानी के टैंक में 10 मिली जी-सी लिक्विड व 10 मिली जी-बायो ह्यूमिक को मिलाकर पौधों पर स्प्रे करें व फल लगने के बाद 15 लीटर पानी के टैंक में 10 मिली जी-एमिनो प्लस व 10 मिली जी-सी लिक्विड को मिलाकर बैंगन के पौधों पर स्प्रे करें।
गैलवे कृषम के जैविक उत्पादों के लाभ
पौधे, फल, पत्तों में सड़न गलन से बचाव, जीवाणु रोग से बचाव करने में सहायक के साथ मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा को बढ़ाता है जिससे उन्नत फल और फसल की वृद्धि होती हैं।
नोट- गैलवे कृषम के सभी जैविक उत्पाद की खासियत यह है कि ये ईको फ्रेंडली हैं और मनुष्यों, पशुओं, पक्षियों तथा पर्यावरण के लिए बिल्कुल हानिकारक नहीं हैं।
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