शीतकालीन फसलों को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। शीतकालीन फसलों के लिए इन चुनौतियों से निपटना और इनकी पैदावार और गुणवत्ता में सुधार करना आवश्यक है। जिनमें शामिल हैं…
रोग और कीट संक्रमण: सर्दियों की फसलें विभिन्न बीमारियों और कीटों के प्रति संवेदनशील होती हैं, जिनका अगर ठीक से प्रबंधन न किया जाए तो पैदावार में काफी कमी आ सकती है।
शीत तनाव: सर्दी के मौसम में तापमान में अचानक गिरावट और पाला अंकुरों को नुकसान पहुंचाता है और फसल की पैदावार को कम करता है।
मृदा-जनित रोगज़नक़: मृदा-जनित रोगज़नक़, जैसे कवक और नेमाटोड, सर्दियों की फसलों के अंकुरण और प्रारंभिक वृद्धि को प्रभावित करते हैं।
बीज की गुणवत्ता: अच्छी फसल की पैदावार प्राप्त करने के लिए बीजों की गुणवत्ता महत्वपूर्ण है। खराब गुणवत्ता वाले बीज से पौधे कमजोर और अस्वस्थ हो जाते हैं।
जलवायु परिवर्तन के अनुकूल फसलों का विकास: जलवायु परिवर्तन के अनुकूल फसलों का विकास करके शीतकालीन फसलों को इनसे होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
मशीनीकरण में सुधार: मशीनीकरण में सुधार करके श्रमिकों की कमी से निपटा जा सकता है।
तापमान: शीतकालीन फसलें ठंडे तापमान में उगती हैं, लेकिन अधिक ठंड से उन्हें नुकसान हो सकता है।
उचित खेती के तरीके: शीतकालीन फसलों की खेती करते समय, उचित सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण, और कीटनाशक नियंत्रण के उपाय किए जाने चाहिए।
खरपतवार: खरपतवार भी शीतकालीन फसलों के लिए एक समस्या हो सकती है। इनकी रोकथाम के लिए किसानों को उचित खरपतवार नियंत्रण तकनीकों का उपयोग करना चाहिए।
इन चुनौतियों के बावजूद, शीतकालीन फसलें महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे खाद्य उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। शीतकालीन फसलें कई प्रकार के खाद्य पदार्थों, जैसे कि अनाज, सब्जियां, और फल प्रदान करती हैं।
PC: डॉ. एसके सिंह प्रोफेसर सह मुख्य वैज्ञानिक(प्लांट पैथोलॉजी) एसोसिएट डायरेक्टर रीसर्च डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर बिहार
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