शीतकालीन फसलों के लिए बीज उपचार के कई लाभ हैं। यह बीजों को रोगों, कीटों और अन्य वातावरणीय कारकों से बचाने में मदद करता है, जिससे फसल की उपज और गुणवत्ता में सुधार होता है। शीतकालीन फसलों के लिए बीज उपचार से कई लाभ हैं जैसे…
रोग प्रबंधन: रासायनिक और जैविक उपचार उन बीमारियों को रोकने और नियंत्रित करने में मदद करते हैं जो फसलों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाती हैं। यह देश एवं प्रदेश की विविध कृषि-जलवायु परिस्थितियों के संदर्भ में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
कीट नियंत्रण: बीज उपचार में उपयोग किए जाने वाले कीटनाशक फसलों को कीटों से बचाते हैं, जिससे खेत में बार-बार कीटनाशक डालने की आवश्यकता कम हो जाती है।
बेहतर अंकुरण: बीज उपचार से अंकुरण दर में सुधार हो जाता है, जिससे अंकुरों का उच्च प्रतिशत सुनिश्चित होता है और अंततः, उच्च फसल की पैदावार सुनिश्चित होती है।
बढ़ी हुई तनाव सहनशीलता: कुछ उपचार बीजों की ठंडे तापमान और जलभराव जैसे पर्यावरणीय तनावों को झेलने की क्षमता को बढ़ाते हैं।
पौधों का एक समान विकास: बीज उपचार से अधिक एक समान पौधा खड़ा होता है, जिससे बेहतर फसल प्रबंधन और कटाई की सुविधा मिलती है।
पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना: उद्भव के बाद कीटनाशकों के प्रयोग की तुलना में बीज उपचार अधिक पर्यावरण अनुकूल होता है क्योंकि यह बीजों पर विशिष्ट कीटों और बीमारियों को लक्षित करता है।
चुनौतियाँ और चिंताएँ
जहाँ बीज उपचार से अनेक लाभ मिलते हैं, वहीं इस अभ्यास से जुड़ी कुछ चुनौतियाँ और चिंताएँ भी हैं जैसे.…
सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: रासायनिक उपचारों के उपयोग से किसानों और पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर चिंताएँ बढ़ जाती हैं। जोखिमों को कम करने के लिए रसायन-उपचारित बीजों की उचित संभाल, भंडारण और निपटान महत्वपूर्ण है।
प्रतिरोध विकास: रासायनिक उपचारों के बार-बार उपयोग से कीटों और बीमारियों में प्रतिरोध का विकास हो सकता है, जिससे वे समय के साथ कम प्रभावी हो जाते हैं।
लागत: बीज उपचार से खेती की कुल लागत बढ़ जाती है, जो छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक चुनौती हो सकती है।
विनियम: रासायनिक उपचारों के उपयोग के संबंध में विनियमों का अनुपालन आवश्यक है। उल्लंघन के परिणामस्वरूप कानूनी परिणाम हो सकते हैं और पर्यावरण को नुकसान हो सकता है।
सीमित पहुंच: कुछ किसानों, विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में, उच्च गुणवत्ता वाले बीज और बीज उपचार सेवाओं तक सीमित पहुंच होती है।
PC : डॉ. एसके सिंह प्रोफेसर सह मुख्य वैज्ञानिक(प्लांट पैथोलॉजी) एसोसिएट डायरेक्टर रीसर्च डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर बिहार
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