एक पौधे को पूर्ण रूप से स्वस्थ रहने के लिए मुख्यतः 14 मिट्टी में पोषक तत्वों जैसेकि शुगर, एमिनो एसिड तथा नाइट्रोजन, फास्फोरस,कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर, पोटेशियम के घुनलशील लवण और जिंक, बोरोन, मैगनीज, मोलिब्देनम, लौह आदि सूक्ष्म भोज्य पदार्थों की आवश्यकता होती है, जोकि एक पौधों को मिट्टी से प्राप्त होती हैं। तो आइए जानते हैं एक पौधों को स्वस्थ रहने के चार चक्र।
पहला चक्र: हजारों साल पहले खेती योग्य धरती पहाड़ों से निकलने वाली नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी से तैयार हुई हैं। इस तरह के उपजाऊ मैदान प्रकृति द्वारा हजारों सालों में तैयार किए जाते हैं। नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी में कई तरह के खनिज पदार्थ व पोषक तत्व होते हैं, जो इस मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं।
दूसरा चक्र: जब किसान इन उपजाऊ मैदानों पर खेती करते हैं, तो यह पोषक तत्व पानी में घुलकर पौधों की जड़ों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं। किसी भी जीव या पौधे के स्वस्थ जीवन के लिए यह पोषक तत्व अति आवश्यक हैं। पौधों द्वारा इन पोषक तत्वों के दोहन से मिट्टी में इन पोषक तत्वों की कमी हो जाती हैं। जिससे फसलों में रोग एवं किट लगते हैं।
तीसरा चक्र: इन पौधों को जब जीव जन्तु एवं/ मनुष्य खाते हैं तो यह पोषक तत्व उनमें चले जाते हैं।
चौथा चक्र: मिट्टी को उसके पोषक तत्व वापस देने के लिए, जीवों की विष्ठा/ पौधों की पत्तियां व जानवरों के अवशेष, इन सबको मिट्टी में वापस डाल दिया जाना चाहिए। मिट्टी के अंदर बहुत सारे छोटे-छोटे मित्र जीवाणुओं की एक फौज रहती है। ये इतने छोटे व इतने ज्यादा होते है कि एक ग्राम मिट्टी में 10 करोड़ से भी ज्यादा इन मित्र जीवाणुओं की फौज रहती हैं।
इनकी लगभग 10,000 प्रजातियां हैं। लेकिन इनमें से जो हमारी मिट्टी को उपजाऊ बनाती हैं, वो मुख्यातः राइजोबियम, एजोटोबेक्टर, पी.एस.बी इत्यादि। जब हम कोई जैविक तत्व जैसेकि पशुओं का गोबर, फसलों के अवशेष सब्जी के पत्ते, मिट्टी में डालते हैं, तो ये तत्व कुछ दिन मिट्टी में रहने के बाद सड़कर हयूमस पैदा करते हैं। इस हयूमस को सूक्ष्म जीवाणु खाते हैं और उसके बाद वे एक स्राव करते हैं।
इस स्राव से मिट्टी को बहुत सारे पोषक तत्व जैसकि शुगर, एमिनो एसिड तथा नाइट्रोजन फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर, पोटेशियम के घुलनशील लवण और जिंक, बोरोन, मैग्निज, मोलिब्देनम, लौह आदि सूक्ष्म भोज्य पदार्थ प्राप्त होते हैं। इस तरह से मिट्टी को पोषक तत्व वापस मिल जाते हैं और इस प्रकार पोषक तत्वों का चक्र पूरा होता हैं। 1960 के दशक में हमारे देश में खाद्यान्न का एक बहुत बड़ा संकट आया। देश में खाने के लिए अन्न की भारी कमी हुई। उस समय इस समस्या से लड़ने के लिए देश के किसानों को आधुनिक खेती के लिए प्रेरित किया गया।
हरित क्रांति के नाम पर, किसानों पर जोर दिया गया कि वे इस दौर में संकर बीज, रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल करें। इन सबसे अन्न का उत्पादन बढ़ा और भारत अन्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गया। लेकिन आज इस नई व विकसित समझी जाने वाली खेती के दुष्परिणाम सामने आ गए हैं। वैज्ञानिकों के अनुसंधानों से पता चला कि इस खेती से जहां एक ओर किसानों के भविष्य पर प्रशन चिन्ह लग गया, वहीं दूसरी ओर इस तरह से उपजाऊ अन्न से पर्यावरण व मानव शरीर पर असर पड़ा है।
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