तिलहन फसलों में तीसी एक महत्वपूर्ण फसल है। जिसे हम अलसी भी कहते हैं। इसके पौधों में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। तीसी की मांग बाजारों में ज्यादा रहती है। क्षेत्रफल के लिहाज़ से देखे तो तीसी की खेती के मामले में भारत का विश्व में पहला स्थान है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और राजस्थान व उड़ीसा तीसी के प्रमुख उत्पादक राज्य है। तीसी की जैविक खेती कर के किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते है। तो आइए जानते हैं कैसे?
तीसी का व्यापक इस्तेमाल कहां-कहां होता है: औषधीय बनाने के अलावा तीसी के रेशे का प्रयोग मोटे कपड़े, रस्सी, आदि बनाने में किया जाता है। अलसी के बीज से निकलने वाले तेल का प्रयोग वार्निश, पेंट, साबुन, रंग, आदि तैयार करने में किया जाता है।
तीसी की जैविक खेती के लिए उपयुक्त जलवायु: तीसी रबी के मौसम में उगाई जाती है। इसके लिए समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। बीजों के अंकुरण के लिए 15 से 20 डिग्री तापमान की जरूरत होती है।
तीसी की जैविक खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी: इसके लिए बुलई दोमट मिट्टी सबसे अच्छा होता है। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएचमान 6.5 से 7.5 के बीच होनी चाहिए। जलभराव वाले जमीन में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए।
तीसी की जैविक खेती कैसे करें?: तीसी की जैविक खेती क्यारियों में करनी चाहिए। सभी क्यारियों के बीच 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी रखें। पौधों से पौधों के बीच 5 से 7 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए।
तीसी के बीज की उन्नत प्रजातियाँ: नीलम, हीरा, मुक्ता, गरिमा, लक्ष्मी 27, T-397, K-2, शिखा, पद्मिनी, LC-54, LC-185, K-2, हिमालिनी, श्वेता, शुभ्रा, JLS(J)-1, जवाहर-17, जवाहर-552, जवाहर-7, जवाहर-18, श्वेता,गौरव आदि है।
तीसी की जैविक खेती के लिए उपयुक्त जैविक खाद: टीसी की फसल को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की मात्रा क्रमश: 25, 15 और 10 किलोग्राम प्रति एकड़ खेत के हिसाब से देना चाहिए। फॉस्फोरस और पोटाश की मात्रा बुआई के समय और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुआई के समय और आधी पहली सिंचाई पर देने से अधिक लाभ प्राप्त होता है। तो इसके लिए आप इस जैविक खाद का प्रयोग कर सकते हैं। 100 से 150 किलोग्राम 12 माह पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट के साथ जी-सी पावर, जी वैम को आपस में अच्छी तरह मिला कर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें बुवाई से पहले मिट्टी उपचार के लिए। फिर बीज को उपचारित कर बुवाई करें।
कटाई, मड़ाई और उपज: दाने वाली फ़सल की कटाई मध्य मार्च से लेकर अप्रैल के प्रारम्भ तक होती है। फ़सल की कटाई करके बंडल खलिहान में लाये जाते हैं। यहाँ बंडल 4 से 5 दिनों तक सुखाये जाते हैं। बाद में मड़ाई के लिए थ्रेशर से तीसी के दानों को अलग करते हैं। तीसी की उन्नत प्रजातियों से औसत उपज 3 से 5 क्विंटल और मिश्रित फ़सल से 50 से 1 क्विंटल प्रति एकड़ तक दाने की उपज प्राप्त होती है।
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