पिछली चार शताब्दियों के दौरान स्वदेशी बागवानी फसलों के अलावा, दक्षिण एवं अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप, मध्य और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से कई बागवानी फसलें भारत में लाई गई हैं। उनमें से कुछ ने भारत की जलवायु-परिस्थितियों को अपनाया और अब वे प्रमुख बागवानी फसलें बन गई हैं। कई अल्प-दोहित फल जैसे मैंगोस्टीन, लोंगन, एवोकैडो, वॉटर एप्पल, हांग प्लम, मैकाड़मिया नट, कीवी फ्रूट, लोंगसैट, डयूरियन, पैशन फ्रूट, कमलम, पुलासन, कैरंबोला, पत्तेदार सब्जियां, शतावरी, कैल, ब्रोकोली, ब्रसेल्स स्प्राउट, सलाद आदि पिछली कुछ शताब्दियों के दौरान भारत में लाए गए थे। ये बागवानी फसलें धीरे-धीरे हमारे दैनिक आहार में दिन प्रति दिन अपना स्थान बना रही है।
भारत में उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों से लेकर समशितोषण वनों तक के विस्तृत परिदृश्य के कारण अल्प दोहित बागवानी फसलों की समृद्धि विविधता है। भारतीय उपमहाद्वीप में कई फलों और सब्ज़ियों की प्रजातियां उत्पन्न हुई हैं। हमारा देश कटहल, बेल, आंवला, बेर, जामुन, महुआ, आम, फालसा, लसोड़ा, करोंदा, कैथ, बिलंबी, कोकम, बैंगन एवं खिरावर्गीय और फलीदार फसलों, ऑर्किड, फूलों के पौधों आदि की उत्पति का केंद्र भी है।
इनमें से कुछ फसलों ने पिछले कुछ दशकों में बेहद लोकप्रियता हासिल की है, लेकिन अधिकांश फसलें अभी भी बड़े क्षेत्र में नहीं उगाई जाती हैं। कुछ बागवानी फसलें अन्य व्यावसायिक बागवानी फसलों की तरह स्वादिष्ट नहीं हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश खनिज और विटामिन से भरपूर हैं। इनमें से कई में औषधीय और उपचार संबधी गुण भी है। प्राचीन आयुर्वेदिक साहित्य में आंवला, जामुन, बेल, कैथ, करेला, ककोड़ा आदि के औषधीय मूल्यों का उल्लेख किया जाता है।
पिछले 40 वर्षो में आंवला तथा बेल का क्षेत्रफल और उत्पादन कई गुना बढ़ गया है और ये प्रमुख फल बन गए हैं। आंवला के कई प्रसंस्करित उत्पादन अब स्वास्थ्यपुरक के रूप में उपयोग के अलावा विटामिन-पूरक के रूप में भी निर्यात किए जाते हैं। इनमें से कुछ फल जैसे कोकम, मालाबार इमली, डयूरियन, कटहल, बिलंबी और जामुन अपने चिकित्सीय गुणों के कारण लोकप्रियता प्राप्त कर रहे हैं। मोटापारोधी गुणों के कारण कोकम और गार्सीनिया के उत्पादों का निर्यात पिछले एक दशक में तेजी से बढ़ा है।
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