बारिश के बाद आलू की फसल को झुलसा रोग लगने का सबसे ज्यादा खतरा होता है। इस रोग के प्रकोप से आलू की फसल को 40 से 45 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है। यह ब्लाइट रोग फाइटोफ्थोरा नामक कवक के कारण होता है, जो वातावरण में नमी और रोशनी कम होने पर फैलता है। इसका प्रकोप वर्षा के दौरान या उसके बाद होता है तथा यह चार से पांच दिन के अंदर आलू की हरी पत्तियों को नष्ट कर देता है।
इससे पत्तियों पर सफेद गोले बन जाते हैं, जो बाद में भूरे और काले रंग में बदल जाते हैं। कुछ ही दिनों में आलू के कंदों का आकार छोटा हो जाता है और उत्पादन 25 से 30 प्रतिशत तक कम हो सकता है।
आलू की फसल में झुलसा रोग की पहचान
रबी मौसम में आलू बोया जाता है और आलू उत्पादन में उत्तर प्रदेश अग्रणी है। ठंड के मौसम में आलू की फसल को बचाना जरूरी है, खासकर सरसों और चने की फसल को ठंड से ज्यादा प्रभावित करना पड़ता है। अधिक पाले के कारण जब पत्तियां पीली हो जाती हैं तो आलू सड़ने लगते हैं और इससे झुलसा रोग के कारण उपज प्रभावित हो सकती है।
ऐसे में किसानों को प्रांभिक चरण में झुलसा रोग आलू की पत्तियों पर दिखाई देने पर 20 मिली जी-बायो फॉस्फेट एडवांस या 20 मिली जी-डर्मा प्लस को 15 लीटर पानी के टैंक में मिलाकर स्प्रे करें। बेहतर परिणाम के लिए एक सप्ताह बाद पुनः स्प्रे करें। जिससे झुलसा रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इसी प्रकार यह दवा पछेती झुलसा रोग पर भी कारगर है। ध्यान रहे ये एक जैविक उपचार है इसलिए लिए इस स्प्रे रोग के शुरुआती चरण में ही करें।
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