आई.सी.ए.आर औषधीय और सुगंधीय पादप अनुसंधान निदेशालय बोरियावी गुजरात के प्रधान वैज्ञानिक डॉ पीएल सारण ने बताया कि नागौरी अश्वगंधा एक एडाप्टोजोनिक जड़ी बूटी है, जिसका उपयोग हजारों वर्षों से आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता रहा है। कुल मिलाकर, देश में 8429 मिट्रिक टन के वार्षिक उत्पादन के साथ अश्वगंधा उगाने के लिए लगभग 10,770 हेक्टेयर भूमि का उपयोग किया जाता है। वैश्विक अश्वगंधा बाजार का आकार 2021 में 42.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया और 2030 तक इसके 113.9 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
उन्होंने बताया कि प्राकृतिक आवसरों से नागौरी प्रजाति के अश्वगंधा संग्रह और अत्यधिक कटाई ने उसकी उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। कई आयुर्वेदिक, न्यूट्रास्युटिकल और फार्मास्युटिकाल उद्योगों में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसी मोटी और भंगुर जड़ों की भारी मांग है। मध्य प्रदेश पश्चिमी राजस्थान के अश्वगंधा उत्पादक नागौर, नोखा और जोधपुर जैसे नजदीकी बाजारों में भी इसके जड़े बेचते हैं। नीमच और खारी बावली अश्वगंधा की प्रमुख मंडिया है, जहां प्रतिदिन व्यापार होता है।
लैडरेस नागौर के लिए सुखी जड़ का बाजार मूल्य 33,000 रुपए प्रति क्विंटल से 37,000 प्रति क्विंटल की दर से जड़ों के आकार और गुणवत्ता के आधार पर औसतन 250 दिनों के भीतर शुद्ध रिटर्न 3 से 4 लाख रुपए प्रति हैक्टेयर प्राप्त कर सकते हैं। भंगूर जड़ों में स्टार्च की मात्रा अधिक और फाइबर की मात्रा कम होती है। इसलिए पाउडर बनाने में आसानी के कारण भी कीमत अधिक प्राप्त हो
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