पारंपरिक खेती से हटकर लाल चावल की जैविक खेती पर किसान अधिक जोर दे रहे है। क्या ये बात सच है या झूठ तो आइए जानते है कृषि जागृति के इस पोस्ट में विस्तार से। लाल चावल के बारे में कुछ एक्सपर्ट दावा करते हैं कि इसमें काफी पौष्टिकता होती है। इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है। इसमें इन्फोसायनिन नाम का एंटीऑक्सिडेंट होता है। झारखंड, तमिलनाडु, केरल और बिहार में भी इसकी अच्छी खेती अभी के से में कुछ किसानों द्वारा की जा रही है। लेकिन इससे ये साबित नहीं होता है की लोग इसकी मांग कर रहे है।
क्या अपने कभी किसी दुकानदार को। इस लाल चावल को बेचते हुए देखना। मैने तो अभी तक नहीं देखा। हां इतना जानते है की लाला चावल ब्राउन चावल से ज्यादा पौष्टिक और सेहतमंद है। ये भी दावा किया जाता है कि ब्राउन राइस की तुलना में ये 10 गुना ज्यादा पौष्टिक होता है।आयरन से भरपूर ‘लाल चावल’ असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में जैविक विधि से उगाया जाता है। लाल चावल की किस्म को ‘बाओ-धान’ कहा जाता है, जो असमिया भोजन का अटूट हिस्सा है। असम के किसान लाल चावल को बिना किसी रासायनिक खाद की मदद से उगाते हैं।
इस समय करें लाल चावल की जैविक खेती
लाल चावल की किस्म की जैविक खेती जून से जुलाई महीने में की जाती है और अक्टूबर से नवंबर के महीने में फसल तैयार हो जाती है। लाल चावल की जैविक खेती मध्य हिमालय के ऐसे क्षेत्रों में होती है, जहां पर पानी की उपलब्धता होती है। इसकी जैविक खेती से किसाना अच्छा मुनाफा भी कमा सकते है इनकी मांग बाजार में अभी ज्यादातर नहीं है। क्योंकि लोग इसके गुण और फायदे के बारे में कम जानते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत सरकार द्वारा इस लाल चावल को प्रत्साहन के लिए किसानों सब्सिडी नहीं दी जाती हैं। हो सके तो आने वाले समय में सरकार इस लाल चावल पर ध्यान दे और इसके इंटनेशन मार्केट में उजागर करें।
यह भी पढ़े: देशभर के लगभग 5 हजार किसान उत्पादक संगठन ओएनडीसी पर पंजीकृत!
जागरूक रहिए व नुकसान से बचिए और अन्य लोगों के जागरूकता के लिए साझा करें एवं कृषि जागृति, स्वास्थ्य सामग्री, सरकारी योजनाएं, कृषि तकनीक, व्यवसायिक एवं जैविक खेती संबंधित जानकारियां प्राप्त करने के लिए कृषि जागृति चलो गांव की ओर के WhatsApp Group से जुड़े या कृषि संबंधित किसी भी समस्या के जैविक समाधान के लिए हमे WhatsApp करें। धन्यवाद