मध्य प्रदेश के कृषि विकास मंत्री एडल सिंह कंसाना ने किसानों से ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल में कीटनाशकों और निदानाशकों के न्यूनतम उपयोग की अपील की है। उन्होंने कहां की अत्यधिक रासायनिक दवाओं का दुष्प्रभाव न केवल मानव स्वास्थ्य पर बल्कि मृदा, जल और पर्यावरण पर भी काफी असर पड़ रहा है।
वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी हैं कि इन दवाओं से कई अन्य नई बीमारियां जन्म ले रही हैं। कृषि मंत्री कंसाना ने बताया कि मूंग की खेती किसानों की आय बढ़ाने में सहायक रही है, लेकिन इसे जल्दी पकाने के लिए कई किसान निदानाशक दवा (पेराक्वाट डायक्लोराइड) का ज्यादा छिड़काव कर रहे हैं। यह रसायन मूंग की फसल में कई दिनों तक बना रहता है, जो मानव स्वास्थ्य, पशुओं और पक्षियों के लिए बेहद हानिकारक साबित हो रहा है।
उन्होंने किसानों को सुझाव दिया कि मूंग की पैदावार के लिए प्राकृतिक पद्धतियों और जैविक तरीकों को अपनाएं, ताकि फसल समय पर प्राकृतिक रूप से पक सके और किसी भी हानिकारक प्रभाव से बचा जा सके। कृषि मंत्री ने कहां कि कृषि और स्वास्थ्य विशेषज्ञों पर्यावरणविदों और सुधार संस्थानों की अनुसंधान रिपोर्ट के आधार पर कीटनाशकों के संतुलित उपयोग की सिफारिश की गई है। राज्य सरकार विभिन्न योजनाओं के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है और किसानों को जैविक खेती को दिशा में प्रशिक्षित भी कर रही है।
गौरतलब है कि प्रदेश के नर्मदापुरम, हरदा, सीहोर, नरसिंहपुर, बैतूल, जबलपुर, विदिशा, देवास और रायसेन सहित कई जिलों में ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती एक लाभदायक विकल्प बन चुकी है। इस साल 14.39 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में मूंग की फसल लगाई गई है, जिससे अनुमानित उत्पादन 20.29 लाख टन रहने की उम्मीद है। राज्य में ग्रीष्मकालीन मूंग का औसत उत्पादन 1,410 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर दर्ज किया गया है।
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