पंजाब सरकार ने राज्य में तेजी से गिरते भूजल स्तर और बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण से निपटने के लिए कड़ा फैसला लिया है। आगामी खरीफ सीजन से पूसा-44 और हाइब्रिड धान की किस्मों की खेती व बिक्री पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस अवश्य की अधिसूचना पंजाब कृषि विभाग द्वारा राज्य भर के मुख्य कृषि अधिकारियों को भेज दी गई है।
आपको बता दें पूसा-44 एक लंबे समय में पकने वाली धान की किस्म है, जो भारी जल खपत और पराली उत्पादन के लिए कुख्यात रही। विशेषज्ञों के अनुसार, इसकी खेती से जहां भूजल का अत्यधिक दोहन होता है, वहीं पराली जलाने से वायु प्रदूषण और दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ जाता है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की सिफारिशों पर आधारित इस फैसले का मकसद जल संवेदनशील और पर्यावरण अनुकूल खेती को बढ़ावा देना है। पीएयू ने पीआर-126 जैसी किस्मों की सीधी बुआई की सिफारिश की है, जो कम पानी लेती हैं और कम समय में पकती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार का यह निर्णय इसलिए भी जरूरी था, क्योंकि पूसा-44 जैसी धान की किस्में ब्लाइट व रस चूसने वाले कीटों से अत्यधिक प्रभावित होती हैं। इससे किसानों को महंगे कीटनाशकों का इस्तेमाल करना पड़ता है, जो खेती की लागत बढ़ाते हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने हैं। पंजाब सरकार ने संकर किस्मों को लेकर भी सरकार ने चिंता जताई है।
अधिसूचना में कहां गया है कि ये किस्में न केवल महंगी होती हैं, बल्कि अक्सर भारतीय खाद्य निगम के मानकों पर खरी नहीं उतरती, जिससे किसानों को बाजार में कम मूल्य मिल पाता है। कृषि विभाग ने राज्य भर के किसानों से अनुरोध किया है कि वे नई नीति का कड़ाई से पालन करें और जल तथा पर्यावरण को बचाने में सरकार का सहयोग करें। यह निर्णय एक ओर जहां प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की दिशा में अहम प्रयास है, वहीं यह देखना भी दिलचस्प होगा कि नीतियों में स्पष्टता के अभाव से किसान किस हद तक प्रभावित होते हैं।
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