उत्तर प्रदेश की गौशालाएं अब आत्मनिर्भर बनने की राह पर हैं। राज्य सरकार ने गाय के गोबर और मूत्र का उपयोग कर पर्यावरण अनुकूल कृषि को बढ़ावा देने की नई योजना बनाई है। इससे टिकाऊ खेती को प्रोत्साहन मिलेगा, मिट्टी की उर्वरता बढ़ेगी और किसानों को आर्थिक लाभ होगा। प्रदेश के पशुपालन मंत्री धर्मपाल सिंह ने बताया कि सरकार गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर स्तर पर काम कर रही है।
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड, कृषि विभाग और अन्य हितधारकों के सहयोग से सभी गौशालाओं में वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाया जाएगा, जिसे किसानों को बेचा जाएगा। यह प्राकृतिक गाय आधारित खेती को बढ़ावा देने का प्रयास है। इसके लिए नाबार्ड सहित अन्य वित्तीय संस्थानों से भी सहयोग लिया जा रहा है। इस योजना के तहत गाय के गोबर और गौमूत्र से जैविक उर्वरक और प्राकृतिक कीटनाशक तैयार किए जाएंगे।
इसके अलावा किसानों और गौशाला कर्मचारियों को पशु पोषण सुधार और चारा उत्पादन की ट्रेनिंग दी जाएगी। सरकार रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के विकल्प के रूप में जैविक खेती को प्राथमिकता दे रही है, जिससे मृदा, जल और पर्यावरण का संरक्षण किया जा सके।गौशालाओं में पल मवेशी अब खेती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
इसके गोबर और गौमूत्र से बनने वाले जैविक खाद और कीटनाशकों से किसानों को दोहरा लाभ मिलेगा। एक ओर उनके परिवारों के लिए पौष्टिक दूध सुनिश्चित होगा और दूसरी ओर उनकी मिट्टी की उर्वरता में सुधार होगा। राज्य में 7,700 से ज्यादा गौशालाओं में 12.5 लाख आवारा मवेशी हैं। इन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए मुख्यमंत्री सहभागिता योजना लागू की गई है, जिसके तहत 1.62 लाख आवारा मवेशियों और 1 लाख किसानों को हर महीने 1,500 रुपए प्रति पशु दिए जा रहे हैं।
सरकार ने अपने नवीनतम बजट में आवारा मवेशियों की देखभाल के लिए 2,000 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं, जो पहले दिए गए 1,001 करोड़ रुपए के अतिरिक्त है। इसके अलावा 543 नई गौशालाओं को मंजूरी दी गई है। प्रत्येक बड़ी गौशाला के लिए 1.60 करोड़ रुपए की अतिरिक्त धनराशि भी दी जाएगी।
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