मटर की फसल एक रबी फसलों में से एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मटर की फसल के प्रमुख रोग व किट की रोकथाम आवश्यक है। जिससे की उत्पादकों को इसकी फसल से इच्छित उपज प्राप्त हो सके। मटर की फसल में लगने वाले रोगों में शामिल है, पाऊडरी मिल्डयू, एसकोकाइटा ब्लाइट फ्यूजेरियम विल्ट, सफेद विगलन, डाउनी मिल्डयू रस्ट, जीवाणु अंगमारी मौजेक और अगेती भूरापन आदि प्रमुख है। वही मटर की फसल में लगने वाले कीटों की बात करे तो लीफ माइनर और फली छेदक का प्रकोप ज्यादा होता है।
अमूमन किट व रोग नियंत्रण के लिए किसान रोग व किट के लगने के शुरुआती चरण में ही रासायनिक कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग करते हैं। लेकिन इससे कृषि लागत में वृद्धि होती है। साथ ही मृदा स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। ऐसे दुविधा में हमारे किसान भाई किट व रोग लगने के शुरुआती चरण में ही जैविक विधि से नियंत्रण करे तो ये हर तरह से किसान के लिए लाभकारी होगा।
कैसे करे इन रोगों का जैविक विधि से नियंत्रण
पाउडरी मिल्डयू: रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को इकठ्ठा करके जला दें या रोग प्रतिरोधी किस्में लगाएं एवं बीज को उपचारित करके और बीज परीक्षण कर बुवाई करें। फसल की निगरानी करते रहे एवं रोग के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत जैविक नियंत्रण करें। इसके लिए आपको 15 मिली जी-बायो फॉस्फेट एडवांस को 15 लीटर पानी के टैंक में मिलाकर स्प्रे करें।
इसके अलावा रोग के लक्षण दिखाई देने से पहले लहसुन की गठियों के द्रव्य 2 प्रतिशत का छिड़काव 7 दिन के अंतराल पर करें। अथवा दूध में हींग मिलाकर 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। अथवा 2 किलोग्राम हल्दी का चूर्ण और 8 किलोग्राम लकड़ी की राख का मिश्रण बनाकर पत्तों के ऊपर डालें। अथवा अदरक के चूर्ण को 20 ग्राम प्रति लीटर पानी में डालकर घोल बनाएं और 15 दिन के अंतराल पर तीन बार छिड़काव से चूर्ण आसिता सहित फफूंद वाले रोग का प्रकोप कम होता है।
एस्कोकाइटा ब्लाइट रस्ट: सबसे बाजार से उच्च गुणवत्ता के बीज प्राप्त कर बीज उपचार कर बीज का परीक्षण कर बुवाई करें। फसल में ये बीमारी आने पर गौमूत्र और लस्सी का 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें एवं रोग ग्रसित पौधों को नष्ट कर दें। फिर हल्की चिंचाईं करे अगर करने लायक हो।
फ्यूजेरियम विल्ट: फसल चक्र अपनाएं। स्वस्थ बीज का प्रयोग करे। बीज की बुवाई करने से पहले जैव उर्वरकों से मिट्टी को उपचारित करें एवं बीज बुवाई से पहले बीज को उपचारित कर फिर बुवाई करें।
सफेद विगलन: रोग ग्रस्त पौधों के अवशेषों को इकठ्ठा करके नष्ट कर दें एवं फसल की पत्तियों का फासला 50 से 60 सेमी रखे। खेत तैयार करते समय जैव उर्वरकों से मिट्टी को उपचारित करें। इसके लिए आपको 100 से 150 किलोग्राम 12 माह पुरानी सड़ी व भुरभुरी थोड़ी नमी वाली गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट में 10 किलोग्राम समुद्री शैवाल जी-सी पावर एक्सट्रीम एनर्जी और 10 किलोग्राम समुद्री शैवाल जी-प्रोम एडवांस एक्सट्रेनल एनर्जी में 500 मिली जी डर्मा यानी ट्राइकोडर्मा को किसी छायादार स्थान पर मिलाकर कर 30 मिनट हवा लगने के बाद संध्या के समय प्रति एकड़ खेत में पहले दो जुताई करवा कर कुछ दिनों के लिए खेत को खुला छोड़ छिड़काव करें।
डाऊनी मिल्डयू, जीवाणु अंगमारी: बीज को बुवाई करने से पहले 10 मिली जी डर्मा यानी ट्राइकोडर्मा से प्रति किलोग्राम बीज को किसी छायादार स्थान पर मिलाकर 15 से 20 मिनट तक हवा लगने के बाद बुवाई करें। लेकिन इससे पहले मिट्टी को भी उपचारित कर लें।
मौजेक: रोगवाहक कीटों की रोकथाम के लिए नीम तेल का 10 से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें। खेत में परावर्ती बिछौना बिछाने से भी रोगवाहक कीटों की संख्या में कमी आ जाती है। या फिर खेत में फोरमैन ट्रैप लगाएं।
अगेती भूरापान: विषाणुमुक्त बीज का ही इस्तेमाल करें। सेमवर्गीय खरपतवारों को नष्ट करें। रोगवाहक सूत्र क्रीम की रोकथाम के लिए मिट्टी को उपचारित करे। मिट्टी उपचार करने के लिए हम ऊपर बता दिए है कौन से जैव उर्वरक का इस्तेमाल करें। और तीन वर्षीय फसल चक्र को अपनाए यानी कहने का मतलब जैसे की अपने पहले साल मटर की बुवाई की फिर दूसरे साल भी मटर की बुवाई की ओर तीसरे साल भी मटर की बुवाई की लेकिन चौथे साल आप किसी अन्य फसल को लगाएं न की मटर की फसल को।
कैसे करे इन कीटों का जैविक विधि से नियंत्रण
लीफ माइनर: पंचगव्य अथवा दशपर्णी के 5 से 10 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।
फली छेदक: एक किलोग्राम मेथी के आटे को 2 लीटर पानी में डालकर 24 घंटे के लिए रख देते हैं। इसके उपरान्त इसमें 10 लीटर पानी डालकर फसल पर छिड़काव करते हैं। इससे 50 प्रतिशत तक सुंडियों की रोकथाम हो जाती है।
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