मधेपुरा, बिहार: जिले में यूरिया की भारी किल्लत से किसान काफी परेशान हैं। आपको बता दे कि गेहूं की पहली सिंचाई के बाद यूरिया का छिड़काव जरूरी है, लेकिन यूरिया न मिलने से किसानों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। कृषि दुकानदारों का कहना है कि कंपनियां जबरन यूरिया के साथ अन्य उत्पाद दे रही हैं, जिससे खाद उठाने में दिक्कत आ रही है और उनकी पूंजी फंस रही है।
इस परेशानी के चलते किसानों को ऊंचे दामों पर यूरिया खरीदना पड़ रहा है। सरकारी रेट पर यूरिया न मिलने पर किसानों को 350 से 400 रुपए प्रति बोरी चुकाना पड़ रहा है। डीएपी भी खुले बाजार में 1700 रुपए प्रति बोरी की दर से बिक रही है। एफसीआई गोदाम पर कुछ खाद आती है, लेकिन वह भी 3 से 4 दिन में खत्म हो जाती है। किसान इफको गोदाम के बाहर रात भर लाइन में खड़े होकर खाद लेने की कोशिश करते हैं।
स्थानीय विक्रेताओं पर आरोप है कि वे जानबूझकर यूरिया को दूसरे गोदामों में छिपाकर रखते हैं और किल्लत का बहाना बनाकर किसानों से मनमाने दाम वसूलते हैं। वहीं, जिला कृषि अधिकारी का दावा है कि यूरिया की कोई कमी नहीं है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। निवासी किसान से पूछने पर उन्होंने बताया कि सरकारी रेट पर यूरिया मिलना नामुमकिन है। दुकानदार या तो देने से मना कर रहे हैं, या फिर 400 रुपए प्रति बोरी मांग रहे हैं।
उन्होंने बताया कि गेहूं की पहली सिंचाई के बाद यूरिया का छिड़काव अनिवार्य है, इसलिए किसान किसी भी कीमत पर इसे खरीदने को मजबूर हैं। कई किसानों का कहना है कि खाद की किल्लत का कारण सिर्फ आपूर्ति की कमी ही नहीं है, बल्कि बाजार में मनमानी और प्रशासनिक सख्ती का अभाव भी है। किसानों ने सरकार से इस समस्या का जल्द समाधान निकालने की मांग की है।
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