हिमाचल प्रदेश के कृषि विभाग के उपनिदेशक डॉ शशिपाल अत्री ने किसानों को गेहूं की फसल में पिला रतुआ रोग यानी धारीदार रतुआ से बचाव के लिए सतर्क रहने की अपील की है। यह रोग प्रदेश में बीते वर्षों में गेहूं की पैदावार पर नकारात्मक प्रभाव डाल चुका है। उन्होंने बताया कि पिला रतुआ रोग का प्रकोप ठंड और नमी वाले मौसम में विशेष रूप से दिसंबर से जनवरी के बीच ज्यादा लगने की संभावना होती है।
यह रोग गेहूं की पत्तियों पर छोटे-छोटे पीले फफोलें के रूप में उभरता है, जो शिराओं के बीच कतारों में दिखते हैं। इस रोग की गंभीरता बढ़ने पर फफूंद के बिजाणु पाउडर की तरह हाथों और कपड़ों पर चिपकते हैं। मार्च के अंत तक पीली धारियां काली धारियों में बदल जाती हैं और यह रोग तनों और बालियों तक फैल जाता है।
पौधे की प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया बाधित होने से पत्तियां समय से पहले सुख जाती हैं और दाने सिकुड़ जाते हैं। उपनिदेशक ने बताया कि मार्च के अंत तक पीली धारियां काली धारियों में बदल जाती है। फसल में ज्यादा प्रकोप होने पर यह रोग तने और बालियों तक फैल जाता है। यह रोग पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया को प्रभावित करता है तथा गेहूं की पत्तियां समय से पहले सुख जाती हैं और दाने सिकुड़ जाते हैं।
कृषि विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र हमीरपुर ने इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर प्रोपिकोनाजोल 25 EC का छिड़काव करने की सलाह दी है। इसके प्रयोग करने की सही विधि है, एक लीटर पानी में एक मिलीलीटर प्रोपिकोनाजोल मिलाकर 30 लीटर घोल प्रति कनाल की दर से छिड़काव करें। रोग फैलते रहने की स्थिति में 15 से 20 दिन के अंतराल पर फिर से छिड़काव करें।
यह भी पढ़े: सेब सम्राट हरिमन शर्मा को पद्मश्री सम्मान!
जागरूक रहिए व नुकसान से बचिए और अन्य लोगों के जागरूकता के लिए साझा करें एवं कृषि जागृति, स्वास्थ्य सामग्री, सरकारी योजनाएं, कृषि तकनीक, व्यवसायिक एवं जैविक खेती से संबंधित जानकारियां प्राप्त करने के लिए कृषि जागृति चलो गांव की ओर के WhatsApp Group से जुड़े या कृषि संबंधित किसी भी समस्या के जैविक समाधान के लिए हमे WhatsApp करें।