राजस्थान में किसानों के एक समूह ने 15 मार्च तक सरसों की फसल को 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल से कम पर नहीं बेचने का फैसला किया है। इस कदम के पीछे तर्क यह है कि सरसों की मौजूदा कीमत यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,950 रुपए से नीचे चल रही है, जिससे किसानों को नुकसान हो रहा है। किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहां, हमने 6 हजार रुपए से कम पर सरसों नहीं बेचने का फैसला किया है और यह संदेश राजस्थान के प्रमुख सरसों उत्पादक जिलों तक पहुंचाया जाएगा।
उन्होंने बताया कि टोंक और अविभाजित अलवर जिले के कई किसानों ने महाशिवरात्रि का संकल्प लिया था कि वे इससे कम दाम पर अपनी फसल नहीं बेचेंगे। उन्होंने कहां की टोंक और अविभाजित अलवर जिले में सरसों की खेती करने वाले कई किसानों ने महाशिवरात्रि पर शपथ ली थी और वे इस शपथ को तोड़कर उससे कम कीमत पर फसल नहीं बेचने।
जाट ने बिजनेस लाइन से कहां, हम पिछले कुल सालों से सरसों का सत्याग्रह कर रहे हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि किसानों ने अभी तक कानूनी गारंटी की मांग स्वीकार नहीं की है। रामपाल जाट ने याद दिलाया कि 2023 में किसानों ने दिल्ली में उपवास रखकर सरसों सत्याग्रह किया था, लेकिन सरकार ने उनकी मांगों को नजरअंदाज किया।
उन्होंने कहां, कई ज्ञापन सौंपे गए हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला है। जब तक किसानों को उचित मूल्य नहीं मिलेगा, हमारा आंदोलन जारी रहेगा। रामपाल जाट ने केंद्र सरकार से मांग की है कि सरसों खरीद में किसानों पर लगाई गई सीमाओं को बताया जाए।
उन्होंने कहां, फिलहाल किसानों को केवल 25 क्विंटल प्रति दिन सरसों बेचने की अनुमति है और खरीद खिड़की सिर्फ 90 दिनों की होती है, लेकिन बोरों की कमी, हड़ताल जैसी समस्याओं के कारण यह अवधि 70 दिन भी नहीं रह जाती। उन्होंने सरकार से खरीद प्रक्रिया फरवरी के मध्य से शुरू करने की मांग की, क्योंकि वर्तमान में यह अप्रैल में शुरू होती हैं, जिससे किसान को नुकसान होता है।
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