भारत में कपड़ा उद्योग को राहत देने और घरेलू कपास आपूर्ति की कमी से निपटने के उद्देश्य से एक अहम सुझाव सामने आया है। केंद्रीय कपड़ा आयुक्त की अध्यक्षता में मुंबई में आयोजित कपास उत्पादन एवं उपभोग समिति की बैठक में कपास पर वर्तमान में 11 प्रतिशत आयात शुल्क को समाप्त करने की सिफारिश की गई है। यह सिफारिश ऐसे समय पर आई है जब 2024-25 के लिए देश का कपास उत्पादन 300 लाख गांठ से नीचे आने का अनुमान है।
तमिलनाडु स्पिनिंग मिल्स एसोसिएशन के मुख्य सलाहकार के. वेंकटचलम ने कहां कि यह प्रस्ताव उद्योग के व्यापक हितधारकों की आम राय पर आधारित है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि यदि केंद्र सरकार शुल्क को पूरी तरह समाप्त नहीं कर सकती, तो कम से कम आने वाले महीनों के लिए इसे स्थिर रखा जाना चाहिए। वेंकटचलम का मानना है कि शुल्क हटाना न केवल घरेलू संकट को हल करेगा, बल्कि अमेरिका जैसे प्रमुख आपूर्तिकर्ता देशों के साथ व्यापारिक सद्भाव भी बढ़ाएगा, जिससे कपड़ा निर्यात को नई गति मिल सकती है।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, यह उत्पादन घटकर 291.30 लाख गांठ तक रह सकता है। पिछले सीजन में आयात 15.20 लाख गांठ था, जो इस बार दोगुना होकर 33 लाख गांठ तक पहुंचने की संभावना है। 31 मार्च 2025 तक ही भारत 25 लाख गांठ कपास का आयात कर चुका है। इसके बावजूद कुल आपूर्ति 306.83 लाख गांठ ही हो पाई है, जबकि अनुमानित खपत 315 लाख गांठ है।
गौरतलब है कि भारत ने 2010 के दशक की शुरुआत में बीटी कपास के जरिए कपास उत्पादन को 400 लाख गांठ तक पहुंचाया था। लेकिन 2006 के बाद कोई नई बीटी किस्म बाजार में नहीं आई। कीटों के बढ़ते प्रकोप और बदलते जलवायु पैटर्न के चलते कपास की उत्पादकता में ठहराव आ गया है, जिससे आयात की निर्भरता बढ़ती जा रही हैं।
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