लीची की खेती भारत के कई राज्यों की जा रही है। लीची का फल अपने आकर्षक रंग, स्वाद और गुणवत्ता के कारण अपनी विशिष्ट स्थान बनाए हुए है। लीची उत्पादन में भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है। लीची का पौधा एक बार लगाने के बाद लगातार कई वर्षों तक फल देता है। अच्छी गुणवत्ता वाली लीची की मांग बाजारों में बड़े पैमाने पर है। पूरे देश का 40 प्रतिशत इसकी खेती बिहार में होती है। इसकी खेती से किसानों को काफी अच्छा लाभ होता है।
लीची की किस्में
वर्तमान समय में लीची की कई उन्नत किस्में बाजार में मौजूद है जैसे शाही, स्वर्ण रूपा, चाइना, अर्ली बेदाना, डी- रोज और त्रिकोलिया आदि है।
इन राज्यों में होती है लीची की खेती
भारत में सबसे ज्यादा लीची का उत्पादन बिहार में होता है जहां मुज़्ज़फरपुर और दरभंगा जिलों में सबसे ज्यादा लीची पैदा होती है। उसके बाद पश्चिम बंगाल, असम, उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, त्रिपुरा और पंजाब आदि राज्यों में भी इसकी अच्छी पैदावार होती है।
लीची की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
बलुई दोमट मिट्टी में इसकी खेती अच्छे परिणाम देती है। काली भरी और जल-भराव वाली भूमि में इसकी खेती को नहीं किया जा सकता है। लीची की अच्छी उपज के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7.0 के बीच होना चाहिए।
लीची की खेती के लिए उपयुक्त तापमान
इसकी खेती के लिए 25 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की जरूरत होती है। लीची की खेती गर्म जलवायु वाले क्षेत्र में होती है।
इसकी खेती के लिए उपयुक्त समय
इसकी बिजाई मॉनसून के तुरंत बाद अगस्त सितंबर के महीने में की जाती है। पंजाब लीची की खेती करने का सबसे सही समय दिसम्बर और जनवरी माह है। वहीं अप्रैल और मई के महीने में सामान्य आद्रता में अच्छे फल विकसित होते हैं।
लीची की खेती के लिए उपयुक्त खाद
इसकी खेती में खाद और उर्वरक का प्रयोग विशेष सावधानी से करना चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पहले मिट्टी की जांच करानी चाहिए। उसी के अनुसार खाद और उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए। गड्ढों में अच्छी तरह से हवा और धूप लग जाए तो गड्ढों में सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट को गड्ढे में भर कर ढक दें।
लीची खेती की प्रक्रिया
लीची का पौधा 15 से 20 मीटर तक बड़ा होता है। इसकी के लिए भूमि की अच्छे से जुताई करने के बाद निश्चित दूरी पर गड्ढे खोदना चाहिए। गड्ढों के बीच में दूरी लगभग 10 बाई 10 मीटर तक की दुरी रखनी होगी। खोदे गए गड्ढों को कुछ समय के लिए छोड़ दें। जब गड्ढों में अच्छी तरह से हवा और धूप लग जाए तो गड्ढों में सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट को गड्ढे में भर कर ढक दें। फिर सिंचाई करके कुछ समय के लिए ऐसे ही छोड़ दें। फिर उन गड्ढों में लीची के पौधों को लगा दें।
खेती की सिंचाई
लीची के पौधों की शरुआत में नियमित सिंचाई करनी चाहिये। वहीं सर्दियों में भी जरूरत के हिसाब से सिचाई करनी चाहिए। गर्मी में 3 से 4 दिनों के अन्तराल में सिचाई करें। पौधे को लगाने के पश्चात समय-समय पर पानी और खाद तथा निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए।
फसल की कटाई
लीची के पौधे लगाने के पश्चात् शुरूआत के 3 से 4 वर्षों तक समुचित देख-रेख करने की आवश्यकता पड़ती है। फल का हरे रंग से गुलाबी रंग का होना और फल की सतह का समतल होना, फल पकने की निशानियां हैं। फल को गुच्छों में तोड़ा जाता है। फल तोडऩे के समय इसके साथ कुछ टहनियां और पत्ते भी तोडऩे चाहिए। इसे ज्यादा लंबे समय तक स्टोर नहीं किया जा सकता। यह किस्म 20 से 25 साल तक फल देता है।
लीची की खेती में लागत और मुनाफा
लीची की एक पूर्ण विकसित पौधे से 80 से 100 किलो तक की उपज प्राप्त होती है। बाजार में लीची 60 से 100 रुपए किलो तक बिक जाती है। आप इससे अच्छी कमाई कर सकते है।
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