अक्टूबर-नवंबर में लगाए जाने वाले पपीता की खेती के प्रति आकर्षित हो रहे है किसान उन्हे लगता है की इसकी खेती में फायदे ही फायदे है लेकिन ऐसा नहीं है। यदि इसकी पूरी जानकारी के बगैर आपने अक्टूबर-नवंबर में पपीता की खेती शुरू कर दी फायदे की जगह नुकसान भी हो सकता है। पपीता की मार्केटिंग में कोई दिक्कत नही है क्योंकि हर कोई इसके औषधीय एवम पौष्टिक गुणों से परिचित है। इसके विपरित अन्य फसलों के मार्केटिंग में दिक्कत आती है।
गेंहू-धान जैसी परंपरागत फसलों की बजाय फल-फूल और सब्जी की खेती करने पर विचार करना चाहिए। पपीते की खेती ऐसा ही एक उपाय है जिसके माध्यम से किसान प्रति हेक्टेयर दो से तीन लाख ररुपए प्रति वर्ष (सभी लागत खर्च निकालने के बाद) की शुद्ध कमाई कर सकते हैं। वैसे तो पपीता की बहुत सारी प्रजातियां है लेकिन सलाह दी जाती है की रेड लेडी पपीता की खेती करें।
पपीता की ही खेती क्यों करे किसान?
पपीता आम के बाद विटामिन ए का सबसे अच्छा स्रोत है। यह कोलेस्ट्रोल, डायबिटिक और वजन घटाने में भी मदद करता है, यही कारण है कि डॉक्टर भी इसे खाने की सलाह देते हैं। यह आंखों की रोशनी बढ़ता है और महिलाओं के पीरियड्स के दौरान दर्द कम करता है। पपीते में पाया जाने वाला एन्जाइम ‘पपेन’ औषधीय गुणों से भरपूर होता है।
यही कारण है कि पपीते की मांग लगातार बढ़ रही है। बढ़ते बाज़ार की मांग को देखते हुए लोगों ने इसकी खेती की तरफ ध्यान दिया है। पपीते की फसल साल भर के अंदर ही फल देने लगती है, इसलिए इसे नकदी फसल समझा जा सकता है। इसको बेचने के लिए (कच्चे से लेकर पक्के होने तक) किसान भाइयों के पास लंबा समय होता है।
इसलिए फसलों के उचित दाम मिलते हैं। पपीता को 1.8X1.8 मीटर की दूरी पर पौधे लगाने के तरीके से खेती करने पर प्रति हेक्टेयर तकरीबन एक लाख रुपये तक की लागत आती है, जबकि 1.25X1.25 मीटर की दूरी पर पेड़ लगाकर सघन तरीके से खेती करने पर 1.5 लाख रुपये तक की लागत आती है। लेकिन इससे लगभग दो से तीन लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक की शुद्ध कमाई की जा सकती है।
PC : डॉ. एसके सिंह प्रोफेसर सह मुख्य वैज्ञानिक(प्लांट पैथोलॉजी) एसोसिएट डायरेक्टर रीसर्च डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर बिहार
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