गेहूं के बाद जौ मुख्य खाद्यान्न की श्रेणी में आता है। इसका उपयोग आमतौर पर पशुओं के चारे और पोषण के लिए किया जाता है। जौ एक ऐसी फसल है जिसके लिए कम संसाधनों की आवश्यकता होती है और इसे रबी मौसम में उगाया जाता है, जिससे इसका उत्पाद गेहूं की तुलना में अधिक लाभदायक होता है। इसमें फाइबर की मात्रा अधिक होने के कारण यह मानव स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। जौ की जैविक खेती कम उपजाऊ और बंजर मिट्टी में भी की जा सकती है।
जौ की जैविक खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु
जौ की फसल हर प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाई जा सकती है। जौ की जैविक खेती के लिए उचित जल निकासी वाली पीएच 7 से 8 वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। हल्की नमी एवं ठंडी जलवायु बुआई के लिए उपयुक्त है। फसल की अच्छी वृद्धि के लिए ठंडा और आर्द्र मौसम और पकने के समय 28 डिग्री सेल्सियस तापमान वाला गर्म मौसम अनुकूल होता है।
जौ के बीज बोने की दूरी एवं गहराई: जौ के बीज बोने के लिए कतार से कतार की दूरी 22.5 सेमी होनी चाहिए। यदि बीज बोने में देरी हो तो 18 से 20 सेमी. दूरी बनाए रखें। सिंचित क्षेत्रों में गहराई 3 से 5 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे 5 से 8 से.मी. पर रखें।
जौ के बीज उपचार: जौ की अधिक उपज प्राप्त करने के लिए बीज को 10 मिली जी बायो फॉस्फेट एडवांस से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित कर 30 मिनट तक किसी छायादार स्थान पर हवा लगने दे। फिर बुवाई करें। ऐसा करने से बीज जनित रोग नष्ट हो जाते हैं।
जौ की जैविक खेती के लिए मिट्टी उपचार: बीज बुवाई करने से पहले मिट्टी को भी उपचारित करें। इसके लिए आप 100 से 150 किलोग्राम 12 माह पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट में 10 किलोग्राम जी सी पावर, 10 किलोग्राम जी-प्रोम एडवांस, 1 लीटर जी-बायो फॉस्फेट एडवांस को मिलाकर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें संध्या के समय। फिर बुवाई करें।
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