भारतीय रेपसीड सरसों अनुसंधान संस्थान ने दुनिया की सबसे कम अवधि में पकने वाली सरसों की किस्म विकसित करने का लक्ष्य तय किया है। संस्थान के निदेशक पी.के.राय के अनुसार यह पहल न केवल सरसों की उत्पादकता बढ़ाने में सहायक होगी, बल्कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों का भी समाधान करेगी।
राय ने उम्मीद जताई है कि इस साल सरसों की उत्पादकता पिछले साल के 1.44 तन प्रति हैक्टेयर के बराबर बनी रह सकती है, बर्शते मौसम अगले 10 से 20 दिनों तक अनुकूल रहे। हालांकि राजस्थान में बेमौसम बारिश, जलभराव और अन्य फसलों जैसे चना और गेहूं किसानों के रुझान के कारण बुआई क्षेत्र में कमी आई है।
राय ने सरसों की ऐसी किस्म विकसित करने पर जोर दिया जो 100 से 110 दिनों में पक सके, जबकि वर्तमान किस्मों को पकने में 120 दिन लगते हैं। उनका कहना है कि यह प्रगति चावल की खेती में हुई क्रांति जैसी हो सकती है। नई किस्म न केवल समय बचाएंगी बल्कि उपज में भी कोई कमी नहीं आने देंगी।
राष्ट्रीय तिलहन मिशन सरसों की उच्च उपज और गर्मी सहने वाली किस्मों के विकास में अहम भूमिका निभा रहा है। झारखंड और असम जैसे राज्यों में पायलट परियोजनाओं ने इसकी सफलता को साबित किया है। झारखंड में सरसों की खेती का रकबा 2017-18 के 25 हजार हैक्टेयर से बढ़कर 80 हजार हैक्टेयर हो गया है। असम में भी चार वर्षों में उत्पादकता में 50 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की वृद्धि हुई है
राजस्थान के भरतपुर और अलवर जिलों के किसानों ने वैज्ञानिक तरीकों ओर उच्च उपज वाली किस्मों को अपनाकर पिछले रबी सीजन में 3.8 टन प्रति हैक्टेयर तक की उपज हासिल की। राय ने पूर्वोत्तर राज्यों में क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने इसे पीली क्रांति के लिए अपार संभावनाओं वाला क्षेत्र बताया।
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