राजस्थान की जयपुर मंडी में 12 से 19 मई के बीच सरसों की कीमतों में 125 रुपए प्रति क्विंटल की वृद्धि देखने को मिली। 12 मई को मंडी में सरसों का भाव 6,412 रुपए प्रति क्विंटल था, जो 19 मई को बढ़कर 6,537 रुपए प्रति क्विंटल हो गया। केंद्र सरकार द्वारा सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,950 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है।
पिछले एक साल में सरसों की कीमतों में जहां 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, वहीं पिछले महीने में 3 प्रतिशत की गिरावट और पिछले एक महीने में 4 प्रतिशत की तेजी आई है। यह आंकड़े स्पष्ट संकेत देते हैं कि सरसों का बाजार फिलहाल स्थिर लेकिन संभावनाओं से भरा है।राजस्थान की मंडियों में 40 प्रतिशत अधिक आवक दर्ज की गई है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 8 प्रतिशत की कमी देखी गई। हरियाणा के भीतर लगभग 7 लाख टन खरीद हुई है, लेकिन राज्य से बाहर खरीद सीमित रही है।
हालांकि न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर बनी कीमतें किसानों के लिए राहत भरी हैं, फिर भी कमजोर पेराई मार्जिन और तेल तथा तिलहन की सुस्त मांग से कीमतों में कोई बड़ी छलांग लगती नहीं दिख रही। भारत के लिए इस समय सबसे उत्साहजनक पहलू रहा है, चीन से निर्यात में आई तेजी। कनाडा पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने के बाद चीन ने भारत से सरसों खली की बड़े पैमाने पर खरीद शुरू कर दी।
सिर्फ तीन हफ्तों में 52,000 टन की खरीद इस बात का प्रमाण है कि भारत की सरसों खली अंतरराष्ट्रीय बाजार में फिर से आकर्षण का केंद्र बन रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि घरेलू कीमतों में गिरावट और पर्याप्त स्टॉक होने के चलते भारत के लिए निर्यात अब कहीं अधिक लाभकारी हो गया है। वित्त वर्ष 2024-25 में सरसों खली का कुल निर्यात घटकर 18.75 लाख टन रह गया, जो 2023-24 के 22.13 लाख टन से लगभग 15 प्रतिशत कम है। यह गिरावट वैश्विक बाजारों की कमजोर मांग और कीमतों में गिरावट के कारण आई है।
हालांकि मार्च 2025 में तस्वीर कुछ हद तक बदली, जब निर्यात फरवरी के 1.40 लाख टन से बढ़कर 1.93 लाख टन हो गया, जो 37 प्रतिशत की मासिक बढ़त है। बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड इस दौर में प्रमुख आयात रहे, जिससे बाजार में कुछ भरोसा लौटा है। एग्रीवॉच के आंकड़ों के अनुसार, रबी 2024-25 में सरसों की बुआई 89.2 लाख हैक्टेयर पर हुई, जो पिछले साल के 100.3 लाख हैक्टेयर से 11 प्रतिशत कम है। उत्पादन अनुमानित 104.6 लाख टन है, जबकि पिछली बार यह 117 लाख टन था।
हालांकि पैदावार में मामूली सुधार हुआ है। सरसों की पैदावार पिछली बार के 1,166 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर से बढ़कर 1,172 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रहने की संभावना है। बुआई क्षेत्र में कमी का कारण गेहूं, लोबिया और आलू जैसी अधिक लाभकारी फसलों की ओर किसानों का रुझान है। बाजार की मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए सरसों की कीमतें अगले कुछ हफ्तों में 6,350 से 6,600 रुपए प्रति क्विंटल के बीच बनी रह सकती हैं। सरसों तेल की मांग में सुधार आने पर बाजार को नई मजबूती मिलने की संभावना भी बनी हुई है।
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