भारत में प्राकृतिक और गैर रासायनिक खेती को लेकर केंद्र सरकार अब ज्यादा गंभीर होती दिख रही है। कृषि सचिव देवेश चतुवेर्दी ने कहां कि किसानों को रसायन मुक्त खेती अपनाने के लिए स्वैच्छिक रूप से प्रोत्साहित करने हेतु एक समग्र और सुरक्षित प्रोत्साहित प्रणाली तैयार की जानी चाहिए। नीति अनुसंधान संस्थान पहल इंडिया फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने यह बात कही।
चतुर्वेदी ने कहां कि प्राकृतिक खेती को केवल एक सीमित या विशेष बाजार तक ही नहीं सिमटा रहना चाहिए। इसे व्यापक जन उपयोग की दिशा में बढ़ाया जाना चाहिए ताकि आम जनता को पोषण से भरपूर और स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद आसानी से उपलब्ध हो सकें।
प्राकृतिक खेती को चाहिए वैज्ञानिक आधार
इस अवसर पर नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कृषि में मूलभूत बदलाव की जरूरत को रेखांकित करते हुए कहां कि देश को पोषण, पारिस्थितिकी और स्वास्थ्य सुरक्षा प्राप्त करने के लिए कृषि के स्वरूप में परिवर्तन करना होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि गैर रासायनिक खेती की व्यवहार्यता को साबित करने के लिए कठोर अनुभवजन्य अनुसंधान की आवश्यकता है।
अखील भारतीय अध्ययन की रूपरेखा हो रही तैयार
फेडरेशन यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया के प्रो. हरपिंदर संधू और पीआईएफ की अदिति रावत ने देशभर के विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों में पुनर्योजी खेती की व्यावहारिकता और मापनीयता के लिए प्रस्तुत की। इसका उद्देश्य नीतियों और व्यवहारिक उपायों को वैज्ञानिक आधार देना है।
कार्यक्रम में मौजूद अन्य विशेषज्ञों ने भी यह स्पष्ट किया कि भारत के कृषि क्षेत्र में स्थाई बदलाव के लिए वैज्ञानिक डेटा, स्केलेबल मॉडल और सरकार, अनुसंधान संस्थानों तथा किसानों के बीच समन्वय बेहद जरूरी है।
यह पहल ऐसे समय में आई है जब दुनिया भर में पर्यावरण अनुकूल खेती और टिकाऊ कृषि मॉडल की मांग बढ़ रही है। भारत जैसे विशाल कृषि आधारित देश के लिए यह न केवल एक खाद्य और पोषण सुरक्षा की दिशा में कदम होगा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण हो सकता है।
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