पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले की जंगीपुर मंडी में 19 से 26 मार्च के बीच धान की सामान्य किस्म की औसत कीमत मामूली रूप से 30 रुपए प्रति क्विंटल बढ़कर 2,385 रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच गई। यह सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी 2,300 रुपए प्रति क्विंटल सामान्य धान और 2,320 रुपए प्रति क्विंटल ग्रेड-ए धान से अधिक है।
इस समय देश की प्रमुख मंडियों में धान की कीमतें 2,200 से 2,400 रुपए प्रति क्विंटल के दायरे में बनी हुई हैं। दुनिया भर में चावल की कीमतें दो साल के निचले स्तर पर पहुंच चुकी हैं, जिसका मुख्य कारण पर्याप्त आपूर्ति और कमजोर मांग है। पर्याप्त आपूर्ति और कमजोर मांग की वजह से घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसका असर दिख रहा है।
भारत ने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 20 लाख टन से ज्यादा टूटे चावल पर लगे प्रतिबंध हटाए हैं, लेकिन वियतनाम और पाकिस्तान से मिल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा भारतीय चावल निर्यात को पर प्रभावित कर रही हैं। फिलीपींस और इंडोनेशिया जैसे बड़े खरीदारों के पास पहले से पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध है, जिससे मांग में कमी आई है। वहीं अफ्रीकी देश सस्ता चावल खरीदने के लिए वियतनाम और पाकिस्तान की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे भारतीय चावल निर्यात पर दबाव बढ़ रहा है।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम फसल उत्पादन अनुमान के अनुसार, खरीफ सीजन 2024-25 में चावल उत्पादन 1206,79 लाख टन रहने की संभावना है, जो पिछले साल के 1132.59 लाख टन से लगभग 7 प्रतिशत ज्यादा है। इसके अलावा रबी चावल उत्पादन 157.58 लाख टन अनुमानित है। भारत के साथ-साथ कंबोडिया और म्यांमार में भी रिकॉड तोड़ चावल का उत्पादन हुआ है, जिससे वैश्विक आपूर्ति बढ़ने से कीमतों पर और दबाव बढ़ सकता है।
धान की बुआई में भी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। गर्मी के मौसम में धान की बुआई 7 मार्च 2025 तक 27.13 लाख हैक्टेयर तक पहुंच गई, जो पिछले साल की इसी अवधि के 24.33 लाख हैक्टेयर से 11.5 प्रतिशत ज्यादा है। इस बीच 19 मार्च 2025 तक खरीफ सीजन 2024-25 में धान की सरकारी खरीद 757.15 लाख टन की तुलना में 7.62 प्रतिशत अधिक है।
मार्च 2025 तक भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में 367.92 लाख टन चावल और 501.98 लाख टन बिना पीसा हुआ धान का भंडार था, जबकि सरकार को 1 अप्रैल तक केवल 135.8 लाख टन के बफर स्टॉक की जरूरत थी। पर्याप्त भंडार और कमजोर मांग के कारण निकट भविष्य में धान और चावल की कीमतों में गिरावट की संभावना बनी हुई है। हालांकि अगर वैश्विक मांग में सुधार आता है तो कीमतें स्थिर हो सकती हैं। लेकिन अन्य निर्यातकों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा भारतीय बाजार पर दबाव बनाए रखेगी।
बाजार में धान की कीमतों में नरमी के रुझान को देखते हुए किसानों को अपनी फसल बेचने पर विचार करने की सलाह दी जाती है, ताकि कीमतों में संभावित गिरावट से बचा जा सके। हालांकि उन्हें अपनी भंडारण लागत, वित्तीय जरूरतों और सरकारी खरीद तक पहुंच जैसी व्यतिगत परिस्थितियों का मूल्यांकन करने के बाद ही कोई फैसला लेना चाहिए।
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