चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित पांगी घाटी के निवासी प्रदेश सरकार की घोषणा से उत्साहित हैं, जिसमें इस उप-मंडल को हिमाचल प्रदेश का पहला प्राकृतिक खेती उप-मंडल घोषित किया गया है। प्रशासन ने इस घोषणा को जमीन पर उतारने के लिए कमर कस ली है। पांगी की 19 पंचायतों में बसे लगभग 25 हजार लोगों में अधिकांश की आजीविका कृषि और बागवानी पर आधारित है।
पारंपरिक खेती पद्धति के चलते अब तक फसल रोग और उत्पादकता की समस्या बनी हुई थी, लेकिन प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ाने से यहां के किसान अब अधिक आय की उम्मीद कर रहे हैं। भटवास गांव की रतो देवी और पुंटो गांव की सावित्री देवी जैसी महिलाएं पहले से ही इस पद्धति को अपनाए हुए हैं। उनका कहना है कि उनके पूर्वज कभी रासायनिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं करते थे और आज वे भी पूरी तरह जैविक विधियों पर निर्भर हैं।
जीवामृत और घनजीवामृत जैसे जैविक गोलों के उपयोग से मिट्टी की उर्वरता बढ़ी है और फसलों की गुणवत्ता भी बेहतर हुई है। लालदेई बताती हैं कि खट्टी लस्सी, अग्निस्त्र और कन्नई अस्त्र जैसे पारंपरिक उपायों से फसलों को कीटों से बचाया जा रहा है। खास बात यह है कि इस विधि में उपयोग होने वाली अधिकांश साम्रगी स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध होती है।
प्रदेश सरकार के प्रयासों से अब तक पांगी घाटी में लगभग 400 हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती की जा रही है और 2100 से अधिक किसानों को प्रशिक्षण मिल चुका है। साथ ही, प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों का एफपीओ भी गठित किया गया है, जिसके माध्यम से सेब को 75 रुपए किलो और जौ को 60 रुपए प्रति किलो के समर्थन मूल्य पर बेचा जा रहा है।
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