देश में गेहूं के उत्पादन को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक और किसान लगातार प्रयास कर रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा लगातार नई किस्में ईजात की जा रही है। इसके बावजूद हम अंतर्रराष्ट्रीय बाजार की पूर्ति को पूरी नहीं कर पा रहे हैं। इस साल 25 अक्टूबर से गेहूं की बुवाई शुरू हो गई है। आज हम आपको गेहूं के 3 ऐसी किस्मों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी इस साल जबरदस्त मांग है।
गेहूं की इन 3 किस्मों की है मांग
करनाल के भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अनुज कुमार का कहना है कि गेहूं की तीन किस्मों की किसानों में जबरदस्त मांग है। ये किस्में हैं-करन वंदना, करन नरेन्द्र यानि डीबीडब्लयू 222 और पूसा यशस्वी (एचडी 336)। गेहूं की ये तीनों किस्म अगेती किस्म है और प्रतिहेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल का उत्पादन देने में सक्षम है। तो आइये जानते हैं इन किस्मों के बारे में विस्तार से
करन वंदना (Karan Vandana): इस किस्म को डीबीडब्ल्यू-187 (DBW-187 ) के नाम से भी जाना जाता है। इसमें पीला रतुआ और ब्लास्ट जैसी बीमारियां लगने की संभावना बेहद कम रहती है। इस किस्म को करनाल के गेहूं एवं जौ अनुसंधान केन्द्र ने विकसित की थी। करन वंदना उत्तर-पूर्वी भारत के गंगा तटीय क्षेत्र के अनुकूल है। इसमें कई पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, लौहा, जस्ता और खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि इस किस्म में प्रोटीन तत्व 12 प्रतिशत तक होता है।
जबकि अन्य किस्मों में प्रोटीन की मात्रा 10 से 12 प्रतिशत तक होती है। बुवाई के 77 दिनों बाद बालियां निकल आती है, वहीं 120 दिनों में यह पककर तैयार हो जाती है। गेहूं की इस किस्म में 5 से 6 सिंचाई की जरूरत पड़ती है। इस किस्म से प्रति एकड़ 20 से 25 क्विंटल की पैदावार ली जा सकती है। वहीं अन्य किस्मों से प्रति एकड़ 10 से 15 क्विंटल की पैदावार होती है।
करन नरेन्द्र (Karan Narendra): इस किस्म को डीबीडब्ल्यू 222 (DBW-222 ) के नाम से भी जाना जाता है। इसे करनाल के गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान ने विकसित किया है। यह किस्म किसानों के बीच 2019 में ही आई है। 25 अक्टूबर से 25 नवंबर के बीच इसकी बुवाई की जा सकती है। इसकी रोटी अच्छी गुणवत्ता की बनती है। जहां दूसरी किस्मों में 5 से 6 सिंचाई की जरूरत पड़ती है वहीं इसमें सिर्फ 4 सिंचाई करना पड़ती है। इस तरह इस किस्म की खेती से 20 प्रतिशत पानी की बचत होती है। यह किस्म 143 दिनों में पक जाती है।वहीं प्रति एकड़ इससे 15 से 25 क्विंटल तक की पैदावार होती है।
पूसा यशस्वी (Pusa yashasvi): इसे एचडी 3226 (HD-3226 ) के नाम से जाना जाता है। गेहूं कि यह किस्म उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान के उदयपुर और कोटा संभाग, उत्तर प्रदेश के झांसी संभाग को छोड़कर, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड के लिए अनुकूल है। यह करनाल बंट, फफूंदी और गलन रोग प्रतिरोधक होती है। इसमें प्रोटीन 12.8 प्रतिशत तक होता है। पहली सिंचाई बुवाई के 21 दिन बाद की जाती है। इसकी बुवाई 5 नवंबर से 25 नवंबर तक करना उचित मानी जाती है। बुवाई के लिए प्रति एकड़ 30 से 35 किलो बीज की जरूरत पड़ती है।वहीं इस किस्म से प्रति एकड़ 15 से 25 क्विंटल तक की उपज ली जा सकती है।
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