फूलों को खेती में गेंदा की खेती प्रमुख है देश के लगभग सभी राज्यों में इसकी खेती की जाती है। भारत में गेंदे की खेती लगभग 50 से 60 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है, जिससे लगभग 5 लाख मिट्रिक टन से अधिक फूलों का उत्पादन होता है। अन्य फसलों की तरह गेंदे की फसल में कई तरह के रोग लगते हैं जिसके कारण उपज प्रभावित होती है।
गेंदे के पौधे को प्रभावित करने वाले मुख्य रोग
पाउडर रूपी फफूंद: गेंदे के पत्तियों, तनों और फूलों पर सफेद या भूरे पाउडर जैसी वृद्धि का हो जाना इस रोग की पहचान है। इससे संक्रमित गेंदे की पत्तिया पीली पड़ सकती हैं और समय से पहले गिर सकती हैं।
इस रोग से कैसे करें बचाव: 15 मिली जी-बायो फॉस्फेट को 15 लीटर पानी के टैंक में मिलाकर छिड़काव करें। छिड़काव करने के 7 दिन बाद पुनः स्प्रे करें, फिर 10 दिन के बाद 2 किलो हल्दी पाउडर और 8 किलो राख का मिश्रण कर पत्तियों पर छिड़काव कर सकते है। ध्यान रहे प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करने के लिए 75 लीटर पानी की खपत होती है।
मुरझाना और तना सड़ना रोग: मिट्टी नम होने पर भी प्रभावित पौधों की पत्तिया ढीली, झुकी हुई और मुरझाई हुई दिखाई देती है। प्रभावित तने मुलायम, पतले, भूरे रंग के हो सकते हैं और बाद में सड़ जाते है।
कैसे करें बचाव: गेंदे की फसल को इस रोग से बचाने के लिए 10 मिली जी-बायो फॉस्फेट एडवांस को 15 लीटर पानी के टैंक में मिलाकर स्प्रे करें। बेहतर परिणाम के लिए एक सप्ताह के बाद पुनः स्प्रे करें या गेंदे की बुवाई करने से पहले मिट्टी को उपचारित करें।
मिट्टी को उपचारित करने के लिए 100 से 150 किलोग्राम 12 माह पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट में 10 किलोग्राम जी-सी पावर, एक लीटर जी-बायो फॉस्फेट एडवांस को किसी छायादार स्थान पर मिलाकर कर 30 मिनट हवा लगने के बाद संध्या के समय छिड़काव करें। फिर बुवाई करें।
बुवाई करने से पहले गेंदे के पौध को उपचारित कर लें। आप इसके लिए 50 लीटर पानी में 250 मिली जी बायो-फॉस्फेट एडवांस मिला कर पौध के जड़ों को 15 से 20 मिनट तक डुबो कर रखे। फिर उसके बाद बुवाई करें।
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