गेहूं की बुआई पूरी होने के साथ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर में किसानों को पीले और भूरे रतुआ रोग के संभावित संक्रमण को लेकर सतर्क रहने की सलाह दी है। हाल ही में उत्तर भारत में हुई बारिश और मौसमी परिस्थितियों ने फसलों के विकास के लिए अनुकूल माहौल बनाया है, लेकिन इनमें कीटों और रोगों का खतरा भी बढ़ गया है।
भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान यानी आईआईडब्लूबीआर के निदेशक रतन तिवारी ने बारिश वाले इलाकों में प्रति एकड़ 40 किलोग्राम यूरिया का उपयोग करने की सिफारिश की है। वहीं कम बारिश वाले क्षेत्रों में हल्की सिंचाई के जरिए मिट्टी में नमी बनाए रखने और फसलों को पाले से बचाने का सुझाव दिया गया है। अत्यधिक सिंचाई और नाइट्रोजन का प्रयोग करने से बचने की भी सलाह दी गई है, क्योंकि इससे फसलों को नुकसान हो सकता है।
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के उपाय
सकरी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए क्लोडिनफॉप 15 Wp: 160 ग्राम प्रति एकड़ ओर पिनोक्साडेन 5 Ec: 400 मिलीलीटर प्रति एकड़ 100 से 150 लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें।
दोनों तरह के खरपतवारों के लिए सल्फोसल्फ्यरॉन 75 Wg: 13.5 ग्राम प्रति एकड़ ओर सल्फोसल्फ्यरॉन+मेटसल्फ्यूरॉन 80 Wg: 16 ग्राम प्रति एकड़ 100 से 150 लीटर पानी में मिला स्प्रे करें।
किसानों को फसल का नियमित निरीक्षण करने की सलाह दी गई है, ताकि रतुआ रोग के शुरुआती लक्षणों को सही समय पर पहचाना जा सकें। यदि संक्रमण की पुष्टि हो, तो प्रोपिकोनाजोला 25 Ec: 0.1% या टेबुकोनाजोल 50% ओर ट्राइफ्लॉक्सिस्ट्रॉबिन 25% Wg: 0.06% जैसे कवकनाशकों का छिड़काव करें। जो किसान पिछले सीजन में एक ही तरह के कवकनाशक का उपयोग कर चुके हैं, उन्हें इस बार अलग किस्म का कवकनाशक इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है।
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