इन दिनों किसान गेहूं की खेती जोर-शोर से बढ़ रही है, लेकिन इसके बावजूद उन्हें कई इलाके पानी की कमी की समस्या से जूझना पड़ रहा है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी हरियाणा जैसे उत्तर-पश्चिमी राज्यों में गेहूं की इस किस्म को सिंचाई के लिए पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण किसानों को अच्छी पैदावार लेने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इन सभी समस्याओं का समाधान खोजने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र ने एक नई गेहूं की किस्में विकसित की हैं जो अधिक उपज देने वाली और बीमारियों से मुक्त हैं।
गेहूं की DBW-296 किस्म का बीजोपचार: गेहूं की इस किस्म को रोग प्रतिरोधी माना जाता है, लेकिन कभी-कभी कवक रोग इन्हें प्रभावित करते हैं। ऐसे में किसानों को कार्बोक्सिन 35.9 प्रतिशत + थीरम 35.9 प्रतिशत) से उपचार करना चाहिए जिसे 1 से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से छिड़काव किया जा सकता है।
सिंचाई की सीमित मात्रा: इसके लिए सीमित सिंचाई के तहत सर्वोत्तम प्रदर्शन के लिए निम्नलिखित मात्रा का उपयोग किया जा सकता है: 80:50:30 किलोग्राम एनपीके/हेक्टेयर। इसके साथ ही नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुआई के समय और शेष आधी 40 से 50 दिन में देनी चाहिए।
कीट एवं रोगों का नियंत्रण: यदि कभी इसमें पीला, भूरा तना, रतुआ या किसी अन्य बीमारी का प्रकोप हो तो किसानों को प्रोपिकोनाजोल/ट्रायडेमेफोन/टेबुकोनाजोल 0.1 प्रतिशत (1 मिली/लीटर) की मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।
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