सेम या बीन्स की सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है इसे ग्वार के नाम से भी जाना जाता है। बीन्स दिखने में अलग-अलग तरह की होती हैं। यह पीली, सफेद और हरे रंग की पाई जाती है। इसकी खेती करना किसानों के लिए यह बेहद फायदेमंद है। इसकी बुवाई रबी के सीजन में की जाती है। अगर आप भी इस समय बीन्स की खेती करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको इसकी उन्नत किस्मों के बारे में जानना होगा ताकि आप कम समय में अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकें और बढ़िया कमाई कर सकें।
बीन्स की टॉप 5 किस्में
अर्का संपूर्ण किस्म: इस किस्म का निर्माण भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा किया गया है। इसकी बुवाई से लगभग 50 से 60 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं। जिनका प्रति हेक्टेयर कुल उत्पादन 8 से 10 टन के आसपास होता है। आपको बता दें अर्का संपूर्ण किस्म के पौधों पर रतुआ और चूर्णिल फफूंद का रोग नहीं लगते है।
कोहिनूर 51 किस्म: कोहिनूर 51 किस्म की खेती किसान किसी भी समय कर सकते हैं। इस किस्म की फली हरे रंग की होती है। यह फसल 48 से 58 दिनों में फल तोड़ने लायक तैयार हो जाती है।
पूसा पार्वती किस्म: इस किस्म के फलियां मुलायम, गोल, लम्बी और बिना रेशे की होती हैं। यह हरे रंग की होती है। इसकी मांग बाजार में ज्यादा रहती है।
पन्त अनुपमा किस्म: इस किस्म के पौधों पर लगने वाली फली लम्बी, चिकनी और हरे रंग की होती है। जिनका प्रति एकड़ उत्पादन 3 टन तक पाया जाता है। इस किस्म के पौधे बीज रोपाई से लगभग 60 दिनों बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं।
स्वर्ण प्रिया किस्म: इस किस्म के पौधों पर पाई जाने वाली फली सीधी, लंबी, चपटी और मुलायम रेशा रहित होती है। जिनका रंग हरा दिखाई देता है। इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 50 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं।
इन बातों का रखें खास ख्याल
बीन्स को बढ़ाने के लिए सही मात्रा में जैविक खाद-पानी के साथ-साथ धूप की जरूरत होती है। बीन्स की अच्छी पैदावार के लिए 25 से 30 दिन बाद 12 माह पुरानी सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट में 10 किलोग्राम जी-प्रोम एडवांस, 500 मिली जी-बायो फॉस्फेट एडवांस को मिलाकर प्रति एकड़ बीन्स की फसल पर छिड़काव कर सिंचाई करें।
जानवरों से बचाने के लिए पौधे को जाली से घेरे या कोई बैटरी वाला झटका लगाए। रोग एवं किट लगने से बचाने के लिए 15 मिली जी-बायो फॉस्फेट एडवांस को 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। बेहतर परिणाम के लिए एक सप्ताह बाद पुनः स्प्रे करें। आप चाहे तो नीम के तेल को पानी में घोल बनाकर इस पर छिड़काव सकते हैं।
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